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"घिसी पैंसिल / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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फिर रात आ रही है
 
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जब नींद दुःख दिन को
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एकांत उपस्थित हो,'सोने चलो' कहेगा
 
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क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ?
 
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एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ?
 
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या एक मुड़े काग़ज़ पर एक घिसी पैंसिल
 
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तकिये तले दबा कर जिसको कि सो गया हूं ?
 
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('कु़छ पते कुछ चिट्ठियां' नामक कविता-संग्रह से )
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00:49, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण

फिर रात आ रही है
फिर वक़्त आ रहा है
जब नींद दुःख दिन को
संपूर्ण कर चलेंगे
एकांत उपस्थित हो,'सोने चलो' कहेगा
क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ?
एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ?
या एक मुड़े काग़ज़ पर एक घिसी पैंसिल
तकिये तले दबा कर जिसको कि सो गया हूं ?