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"भाषा का युद्ध / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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जब हम भाषा के लिये लड़ने के वक़्त | जब हम भाषा के लिये लड़ने के वक़्त | ||
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यह देख लें कि हम उससे कितनी दूर जा पड़े हैं | यह देख लें कि हम उससे कितनी दूर जा पड़े हैं | ||
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जिनके लिये हम लड़ते हैं | जिनके लिये हम लड़ते हैं | ||
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उनको हमको भाषा की लड़ाई पास नहीं लाई | उनको हमको भाषा की लड़ाई पास नहीं लाई | ||
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क्या कोई इसलिये कि वह झूठी लड़ाई थी | क्या कोई इसलिये कि वह झूठी लड़ाई थी | ||
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नहीं बल्कि इसलिए कि हम उनके शत्रु थे | नहीं बल्कि इसलिए कि हम उनके शत्रु थे | ||
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क्योंकि हम मालिक की भाषा भी | क्योंकि हम मालिक की भाषा भी | ||
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उतनी ही अच्छी तरह बोल लेते हैं | उतनी ही अच्छी तरह बोल लेते हैं | ||
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जितनी मालिक बोल लेता है | जितनी मालिक बोल लेता है | ||
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वही लड़ेगा अब भाषा का युद्ध | वही लड़ेगा अब भाषा का युद्ध | ||
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जो सिर्फ़ अपनी भाषा बोलेगा | जो सिर्फ़ अपनी भाषा बोलेगा | ||
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मालिक की भाषा का एक शब्द भी नहीं | मालिक की भाषा का एक शब्द भी नहीं | ||
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चाहे वह शास्त्रार्थ न करे जीतेगा | चाहे वह शास्त्रार्थ न करे जीतेगा | ||
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बल्कि शास्त्रार्थ वह नहीं करेगा | बल्कि शास्त्रार्थ वह नहीं करेगा | ||
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वह क्या करेगा अपने गूंगे गुस्से को वह | वह क्या करेगा अपने गूंगे गुस्से को वह | ||
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कैसे कहेगा ? तुमको शक है | कैसे कहेगा ? तुमको शक है | ||
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गुस्सा करना ही | गुस्सा करना ही | ||
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गुस्से की एक अभिव्यक्ति जानते हो तुम | गुस्से की एक अभिव्यक्ति जानते हो तुम | ||
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वह और खोज रहा है तुम जानते नहीं । | वह और खोज रहा है तुम जानते नहीं । | ||
− | + | '''जनवरी 1972 में रचित''' | |
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00:58, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण
जब हम भाषा के लिये लड़ने के वक़्त
यह देख लें कि हम उससे कितनी दूर जा पड़े हैं
जिनके लिये हम लड़ते हैं
उनको हमको भाषा की लड़ाई पास नहीं लाई
क्या कोई इसलिये कि वह झूठी लड़ाई थी
नहीं बल्कि इसलिए कि हम उनके शत्रु थे
क्योंकि हम मालिक की भाषा भी
उतनी ही अच्छी तरह बोल लेते हैं
जितनी मालिक बोल लेता है
वही लड़ेगा अब भाषा का युद्ध
जो सिर्फ़ अपनी भाषा बोलेगा
मालिक की भाषा का एक शब्द भी नहीं
चाहे वह शास्त्रार्थ न करे जीतेगा
बल्कि शास्त्रार्थ वह नहीं करेगा
वह क्या करेगा अपने गूंगे गुस्से को वह
कैसे कहेगा ? तुमको शक है
गुस्सा करना ही
गुस्से की एक अभिव्यक्ति जानते हो तुम
वह और खोज रहा है तुम जानते नहीं ।
जनवरी 1972 में रचित