अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> पूनम की उजियारी …) |
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− | + | छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे । | |
− | + | दीदी का सैलफ़ोन बजता ही रहता, | |
− | + | कोई है, जो बातें करता ही रहता, | |
− | + | दीदी हँस-हँस कर क्या बातें करे ? | |
− | + | छुटकू के पल्ले न कुछ भी पड़े । | |
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19:50, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
दीदी लिपस्टिक के नखरे करे ।
छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे ।
दीदी को मिली नई फूलदार साड़ी,
छुटकू को मिली तीन पहियों की गाड़ी,
दीदी कमाऊ है, फैशन करे ।
छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे ।
दीदी संभालती रहे काला चश्मा,
छुटकू चिल्लाते रहें अम्माँ ! अम्माँ !
दीदी की आंखों में सपने भरे ।
छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे ।
दीदी का सैलफ़ोन बजता ही रहता,
कोई है, जो बातें करता ही रहता,
दीदी हँस-हँस कर क्या बातें करे ?
छुटकू के पल्ले न कुछ भी पड़े ।