भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक }} {{KKCatNav…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=रमेश रंजक
 
|रचनाकार=रमेश रंजक
|संग्रह=गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक  
+
|संग्रह=गीत विहग उतरा / रमेश रंजक  
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNavgeet‎}}
 
{{KKCatNavgeet‎}}

12:18, 8 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

हल्दी चढ़ी पहाड़ी देखी
मेंहदी रची धरा
अँधियारे के साथ पाहुना गीत-विहग उतरा ।

गाँव फूल-से गूँथ दिए
सर्पिल पगडंडी ने
छोर फैलते गए
मसहरी के झीने-झीने
दिन, जैसे बाँसुरी बजाता बनजारा गुज़रा।

पोंछ पसीना ली अँगड़ाई
थकी क्रियाओं ने
सौंप दिये मीठे सम्बोधन
खुली भुजाओं ने
जोड़ गया संदर्भ मनचला मौसम हरा-भरा।