भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"असम्भव / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
ऐसा कहीं होता नहीं | ऐसा कहीं होता नहीं | ||
− | ऐसा कभी होगा | + | ऐसा कभी होगा नहीं। |
धरती जले बरसे न घन, | धरती जले बरसे न घन, | ||
− | सुलगे चिता झुलसे न | + | सुलगे चिता झुलसे न तन। |
− | औ ज़िंदगी में हों न | + | औ ज़िंदगी में हों न ग़म। |
ऐसा कभी होगा नहीं | ऐसा कभी होगा नहीं | ||
− | ऐसा कभी होता | + | ऐसा कभी होता नहीं। |
हर नींद हो सपनों भरी, | हर नींद हो सपनों भरी, | ||
डूबे न यौवन की तरी, | डूबे न यौवन की तरी, | ||
हरदम जिए हर आदमी, | हरदम जिए हर आदमी, | ||
− | उसमें न हो कोई | + | उसमें न हो कोई कमी। |
ऐसा कभी होगा नहीं, | ऐसा कभी होगा नहीं, | ||
− | ऐसा कभी होता | + | ऐसा कभी होता नहीं। |
सूरज सुबह आए नहीं, | सूरज सुबह आए नहीं, | ||
− | औ शाम को जाए | + | औ शाम को जाए नहीं। |
तट को न दे चुम्बन लहर | तट को न दे चुम्बन लहर | ||
− | औ मृत्यु को मिल जाए | + | औ मृत्यु को मिल जाए स्वर। |
ऐसा कभी होगा नहीं | ऐसा कभी होगा नहीं | ||
− | ऐसा कभी होता | + | ऐसा कभी होता नहीं। |
दुख के बिना जीवन कटे, | दुख के बिना जीवन कटे, | ||
− | सुख से किसी का मन | + | सुख से किसी का मन हटे। |
पर्वत गिरे टूटे न कन, | पर्वत गिरे टूटे न कन, | ||
− | औ प्यार बिन जी जाए | + | औ प्यार बिन जी जाए मन। |
ऐसा कभी होगा नहीं | ऐसा कभी होगा नहीं | ||
− | ऐसा कभी होता | + | ऐसा कभी होता नहीं। |
</poem> | </poem> |
10:24, 7 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
ऐसा कहीं होता नहीं
ऐसा कभी होगा नहीं।
धरती जले बरसे न घन,
सुलगे चिता झुलसे न तन।
औ ज़िंदगी में हों न ग़म।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।
हर नींद हो सपनों भरी,
डूबे न यौवन की तरी,
हरदम जिए हर आदमी,
उसमें न हो कोई कमी।
ऐसा कभी होगा नहीं,
ऐसा कभी होता नहीं।
सूरज सुबह आए नहीं,
औ शाम को जाए नहीं।
तट को न दे चुम्बन लहर
औ मृत्यु को मिल जाए स्वर।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।
दुख के बिना जीवन कटे,
सुख से किसी का मन हटे।
पर्वत गिरे टूटे न कन,
औ प्यार बिन जी जाए मन।
ऐसा कभी होगा नहीं
ऐसा कभी होता नहीं।