"कैमरे में बन्द अपाहिज / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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<poem>हम दूरदर्शन पर बोलेंगे | <poem>हम दूरदर्शन पर बोलेंगे | ||
हम समर्थ शक्तिवान | हम समर्थ शक्तिवान |
05:20, 29 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएंगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या आपाहिज हैं ?
तो आप क्यों अपाहिज हैं ?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है ?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)
हां तो बताइए आपका दुख क्या है
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा ?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे ?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछ उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं ?
फिर हम परदे पर दिखलाएंगे
फूली हुई आंख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएंगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद ।