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"उसकी हँसी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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12:15, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

उसकी हँसी
घुल गई
हिमालय की हीरक हँसी में
और मैं
धूप की भरी
नदी से उठ-उठ कर
निनादित
दौड़ने, घूमने
और
चरने लगा
दिगंत तक फैली वनस्पति को

रचनाकाल: ०९-०३-१९७५