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फिर उन्हीं आँखों की ख़ुशबू में नहाने के लिये / गुलाब खंडेलवाल
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20:37, 11 अगस्त 2011
यह है जलने के लिये, वह है जलाने के लिये
ज़िन्दगी की हाट में वे रंग बिकते हैं, गुलाब
!
जिनको लाया था कभी तू उस अजाने के लिये
<poem>
Vibhajhalani
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