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साए से / इब्ने इंशा

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क्यों मेरे साथ-साथ आता है ?
 
मेरी मंज़िल है बेनिशाँ नादाँ
 
साथ मेरा-तेरा कहाँ नादाँ
 
थक गए पाँव पड़ गए छाले
 
मंज़िलें टिमटिमा रही हैं - दूर
 
बस्तियाँ और जा रही हैं - दूर
 
मैं अकेला चलूँगा ऎ साए
 
कौन अहदे-वफ़ा निभाता है
 
क्यों मेरे साथ-साथ आता है
 
तू अभी जा मिलेगा सायों में
 
मैं कहाँ जाऊँ मैं कहाँ जाऊँ
 
किसकी आग़ोश में अमाँ पाऊँ
 
(रचनाकाल : 1944)
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