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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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शायरी की उम्रे-नाबालिग़ी में जब वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ का पहला ग़ज़ल संग्रह ‘शेष बची चौथाई रात’ मंज़रे-आम पर आया, तब उसे पढ़ कर लोगों ने जाना कि ‘अकेला’ के बारे में इस दौर के शहंशाहे-ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र का ये कहना वाक़ई सच है कि “ ‘अकेला’ की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समुन्दर में नई हलचल पैदा करेगी” और जनाब के बारे में हिन्दी गीत सम्राट डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ की ये राय भी अविश्वसनीय नहीं है कि “ इन दिनों हिन्दी में ग़ज़लों की बाढ़ आई हुई है जिसके कारण ग़ज़ल के नाम पर बहुत कुछ कूड़ा-करकट इकट्ठा हो रहा है । हिन्दी के अधिकांश ग़ज़लकारों को न तो ग़ज़ल के मुहावरे का ज्ञान है न उसकी आत्मा से परिचय । लेकिन ‘अकेला’ अपवाद हैं । उनकी ग़ज़लों में भरपूर शेरीयत और तग़ज़्जुल है । छोटी बड़ी सभी प्रकार की बहरों में उन्होंने नये नये प्रयोग किये हैं और वे खूब सफल भी हुए हैं । उनके शेरों में यह ख़ूबी है कि वे ख़ुद-ब-ख़ुद होठों पर आ जाते हैं । ”