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कृष्ण दर्शन / सूरदास

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राधा चलहु भवनहिं जाहि ।
 
कबहिं की हम जमुन आई, कहहिं अरु पछिताहिं ॥
हम चलीं घर तुमहुँ आवहु, सोच भयौ मन माहिं
 
सूर राधा सहित गोपी, चलीं ब्रज-समुहाहिं ॥5॥
की हम तुमसौ कहति रहीं ज्यौं, साँच कहौ की तैसे है ॥
 
नटवर-वेष काछनी काछे, अंगनि रति-पति-सै से हैं ।