Changes

}}
{{KKCatGhazal}}
</poem>
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद।
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद।
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits