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सतत प्रवाह हमारा है,
छत्तीसगढ की माटी का,
यह अभिषेक महान् है...........
भोरमदेव, सरगुजा, शिवरी
रतनपुर,मल्हार,यहीं
अमर काव्य श्रृंगार यहीं
धरती गगन सघन बन गँूजे
जीवन कर नवगान है..........
शस्य श्यामला धरती है.
खेतों में हरियाली है,
लोक शक्ति की लाली है,
जाग उठे हैं गाँव हमारे
जागे सभी किसान हैं............
ज्ञान सभ्यता से आलोकित
विद्वत् जन सम्मान यहाँ
बख्शी जी अरू भानु यहाँ
राव, विप्र, रविशंकर, छेदी,
कुंवर वीर का गान है..............
मानव मूल्यों का सृजन करें हम,
समता, ममता, शांति भरे,
सुख-संमृद्धि सर्वत्र झरे,
विद्या-मंदिर के प्रांगण से,
नवयुग का अभियान है.............. गुरू कृपा के पुण्य परस से.............
'''नोटः- यह गीत गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में ’कुलगीत’ के रूप में गाया जाता है।'''
</poem>
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