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मैं पहनूँगा अपनी लिखाई से बना रात का पहरावा
सिर पर बैठाऊँगा एक सफ़ेद कबूतर
उसके बाद तुम्हारे डाकख़ाने में ले जाऊँगा
अपने चीरे हुए गले से निकली सूक्तियाँ
 
क़ैद की सीटियाँ बहुत दिनों से मुझे उद्वेलित नहीं करतीं
बहुत दिनों से कष्ट नहीं पहुँचा रही शाही चापलूसी
बिच्छू-बूटियों पर गिरा पड़ा है मेरा बिगुलची
सम्भव नहीं गिनना उसके शरीर पर खरोंचों के निशान ।
 
लगता है, अभी वो ख़ूबसूरत पल आया नहीं
उसके मुँह से बाबूना लेने और आँखें खोलने का पल
जब तक ईश्वर चाहेगा, वह पीता रहेगा, मटरगश्ती करता रहेगा
जब तक चार धनकुबेर हाँककर नहीं लाएँगे घोड़ों को मेरे पास ।
 
हीरे के बटन लगाऊँगा फिर से
पूरी उद्दण्डता के साथ पीऊँगा वोद्का
तुम्हारी घपलेबाज़ी में मुझे कुछ नहीं चाहिए
मैं पहले जैसा नहीं रहा, पर चोट खाए हूँ पहली बार।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
А потом отнесу на твою почту
Афоризмы своего разрезанного горла.
 
Я давно не волновался в каторжный свист,
И давно меня не мучит царская лесть.
На крапиве растянулся мой последний горнист,
И на теле у него всех царапин не счесть.
 
Не пришел еще, наверное, прелестный срок –
Взять ромашку с его губ и открыть глаза…
Будет пить он и гулять, пока хочет Бог,
Пока гонят лошадей ко мне четыре туза.
 
Застегнусь ли я опять на алмазные пуговицы,
Буду водку с кем-то пить, дерзкий и мраморный,
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