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मगर ये बर्फ़ पिघलने के बाद आती है
वो नींद जो तेरी पलकों के ख़्वाब बुनती हैयहाँ तो धूप निकलने के बाद आती है ये झुग्गियाँ तो ग़रीबों की ख़ानक़ाहें* हैं-------- <ref>फ़क़ीरों का आश्रम , </ref> हैं क़लन्दरी* कलन्दरी<ref>फक्कड़पन</ref> यहाँ पलने के बाद आती है-------फक्कड़पन
गुलाब ऎसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात काँटों पे चलने के बाद आती है
 
शिकायतें तो हमें मौसम-ए-बहार से है
खिज़ाँ <ref>पतझड़</ref> तो फूलने-फलने के बाद आती है {{KKMeaning}}