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तुम मरे नही हो , ललित मेहतामरा नहीं है तुम्हारा जमीरज़मीर
तुम्हारी ईमानदारी की पुकार जनता के बीच
गूँजती रहेगी हमेशा सदियों तक।तक । तुम्हारी कब्र क़ब्र की दरारों से
आवाज़ें आती रहेंगी और हमें बुलाती रहेंगी
और लहू के कतरे जो ज़मीन पर गिरे
उसी के लहू के कतरों से
तुम जैसे संघर्षरत योद्धा अंकुरित हुए
और आगे भी अंकुरित होते रहेंगे।रहेंगे । 
तुम्हारा लहू जहाँ गिरे वहाँ से पेड़ भी जनमेंगे तो
तुम्हारी शक्लों में दिखेंगे और
चीखेंगे चीख़ेंगे व्यवस्था के विरुद्ध,
तुम्हारी हत्या साबित करती है कि
सच बोलने वाले ऎसे ऐसे ही मार दिए जाते हैं
उनको जीतने से पहले हरा दिया जाता है
मार दिया जाता है ज़िन्द रहने से पहले
पर इतिहास गवाह ऎसे लोग मरते नहीं कभी
ज़िन्दा रहते हैं मरकर भी।भी । 
ठीक वैसे ही तुम भी रहोगे ज़िन्दा
यहाँ की आबोहवा में
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