तुम प्रतीक्षा करना
मैं इन खँडहरों से घूमकर आती हूँ,
जरा देर को इन पाषाण-मूर्तियोंसे मूर्तियों से
अपना मन बहलाती हूँ.'
और तुम फिर कभी लौट कर नहीं आयी.
मैं आवाज आवाज़ पर आवाज आवाज़ देता रहा
किन्तु हर बार
मेरी प्रतिध्वनि ही मुझसे आकर टकरायी.
बेबसी से सिर मारा था!'
आह! जब तुम्हारी उस विकलता का ध्यान आता है
तो अपना सारा दुःखदुख-दर्द भूलकर
मेरा हृदय तुम्हारे दर्द में तड़पने लग जाता है!
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