भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उड़ चल हारिल / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
उड़ चल हारिल लिये हाथ में
 +
यही अकेला ओछा तिनका
 +
उषा जाग उठी प्राची में
 +
कैसी बाट, भरोसा किन का!
  
उड़ चल हारिल लिये हाथ में <br>
+
शक्ति रहे तेरे हाथों में  
यही अकेला ओछा तिनका <br>
+
छूट न जाय यह चाह सृजन की
उषा जाग उठी प्राची में <br>
+
शक्ति रहे तेरे हाथों में  
कैसी बाट, भरोसा किन का! <br><br>
+
रुक न जाय यह गति जीवन की!  
  
शक्ति रहे तेरे हाथों में <br>
+
ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर
छूट न जाय यह चाह सृजन की <br>
+
बढ़ा चीर चल दिग्मण्डल
शक्ति रहे तेरे हाथों में <br>
+
अनथक पंखों की चोटों से
रुक न जाय यह गति जीवन की! <br><br>
+
नभ में एक मचा दे हलचल!  
  
ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर <br>
+
तिनका तेरे हाथों में है
बढ़ा चीर चल दिग्मण्डल <br>
+
अमर एक रचना का साधन
अनथक पंखों की चोटों से <br>
+
तिनका तेरे पंजे में है
नभ में एक मचा दे हलचल! <br><br>
+
विधना के प्राणों का स्पंदन!  
  
तिनका तेरे हाथों में है <br>
+
काँप न यद्यपि दसों दिशा में  
अमर एक रचना का साधन <br>
+
तुझे शून्य नभ घेर रहा है  
तिनका तेरे पंजे में है <br>
+
रुक न यद्यपि उपहास जगत का  
विधना के प्राणों का स्पंदन! <br><br>
+
तुझको पथ से हेर रहा है!  
  
काँप न यद्यपि दसों दिशा में <br>
+
तू मिट्टी था, किन्तु आज
तुझे शून्य नभ घेर रहा है <br>
+
मिट्टी को तूने बाँध लिया है  
रुक न यद्यपि उपहास जगत का <br>
+
तू था सृष्टि किन्तु सृष्टा का  
तुझको पथ से हेर रहा है! <br><br>
+
गुर तूने पहचान लिया है!  
  
तू मिट्टी था, किन्तु आज <br>
+
मिट्टी निश्चय है यथार्थ पर
मिट्टी को तूने बाँध लिया है <br>
+
क्या जीवन केवल मिट्टी है?
तू था सृष्टि किन्तु सृष्टा का <br>
+
तू मिट्टी, पर मिट्टी से
गुर तूने पहचान लिया है! <br><br>
+
उठने की इच्छा किसने दी है?
  
मिट्टी निश्चय है यथार्थ पर <br>
+
आज उसी ऊर्ध्वंग ज्वाल का
क्या जीवन केवल मिट्टी है? <br>
+
तू है दुर्निवार हरकारा
तू मिट्टी, पर मिट्टी से <br>
+
दृढ़ ध्वज दण्ड बना यह तिनका
उठने की इच्छा किसने दी है? <br><br>
+
सूने पथ का एक सहारा!
  
आज उसी ऊर्ध्वंग ज्वाल का <br>
+
मिट्टी से जो छीन लिया है
तू है दुर्निवार हरकारा <br>
+
वह तज देना धर्म नहीं है  
दृढ़ ध्वज दण्ड बना यह तिनका <br>
+
जीवन साधन की अवहेला
सूने पथ का एक सहारा! <br><br>
+
कर्मवीर का कर्म नहीं है!  
  
मिट्टी से जो छीन लिया है <br>
+
तिनका पथ की धूल स्वयं तू
वह तज देना धर्म नहीं है <br>
+
है अनंत की पावन धूली
जीवन साधन की अवहेला <br>
+
किन्तु आज तूने नभ पथ में
कर्मवीर का कर्म नहीं है! <br><br>
+
क्षण में बद्ध अमरता छू ली!  
  
तिनका पथ की धूल स्वयं तू <br>
+
ऊषा जाग उठी प्राची में  
है अनंत की पावन धूली <br>
+
आवाहन यह नूतन दिन का  
किन्तु आज तूने नभ पथ में <br>
+
उड़ चल हारिल लिये हाथ में  
क्षण में बद्ध अमरता छू ली! <br><br>
+
एक अकेला पावन तिनका!
 
+
</poem>
ऊषा जाग उठी प्राची में <br>
+
आवाहन यह नूतन दिन का <br>
+
उड़ चल हारिल लिये हाथ में <br>
+
एक अकेला पावन तिनका! <br><br>
+

23:33, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

उड़ चल हारिल लिये हाथ में
यही अकेला ओछा तिनका
उषा जाग उठी प्राची में
कैसी बाट, भरोसा किन का!

शक्ति रहे तेरे हाथों में
छूट न जाय यह चाह सृजन की
शक्ति रहे तेरे हाथों में
रुक न जाय यह गति जीवन की!

ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर
बढ़ा चीर चल दिग्मण्डल
अनथक पंखों की चोटों से
नभ में एक मचा दे हलचल!

तिनका तेरे हाथों में है
अमर एक रचना का साधन
तिनका तेरे पंजे में है
विधना के प्राणों का स्पंदन!

काँप न यद्यपि दसों दिशा में
तुझे शून्य नभ घेर रहा है
रुक न यद्यपि उपहास जगत का
तुझको पथ से हेर रहा है!

तू मिट्टी था, किन्तु आज
मिट्टी को तूने बाँध लिया है
तू था सृष्टि किन्तु सृष्टा का
गुर तूने पहचान लिया है!

मिट्टी निश्चय है यथार्थ पर
क्या जीवन केवल मिट्टी है?
तू मिट्टी, पर मिट्टी से
उठने की इच्छा किसने दी है?

आज उसी ऊर्ध्वंग ज्वाल का
तू है दुर्निवार हरकारा
दृढ़ ध्वज दण्ड बना यह तिनका
सूने पथ का एक सहारा!

मिट्टी से जो छीन लिया है
वह तज देना धर्म नहीं है
जीवन साधन की अवहेला
कर्मवीर का कर्म नहीं है!

तिनका पथ की धूल स्वयं तू
है अनंत की पावन धूली
किन्तु आज तूने नभ पथ में
क्षण में बद्ध अमरता छू ली!

ऊषा जाग उठी प्राची में
आवाहन यह नूतन दिन का
उड़ चल हारिल लिये हाथ में
एक अकेला पावन तिनका!