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"अकाल / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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अकाल | अकाल | ||
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जब आता है | जब आता है | ||
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अपने साथ लाता है | अपने साथ लाता है | ||
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अड़ियल बैल से बुरे दिन | अड़ियल बैल से बुरे दिन | ||
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अकाल भेद नहीं करता | अकाल भेद नहीं करता | ||
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खेत, पेड़, पशु और आदमी में | खेत, पेड़, पशु और आदमी में | ||
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बाज की तरह आकाश से उतरता है | बाज की तरह आकाश से उतरता है | ||
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हरे-भरे खेतों की छाती पर | हरे-भरे खेतों की छाती पर | ||
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फसल को जकड़ता है पंजों में | फसल को जकड़ता है पंजों में | ||
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खेत से खलिहान तक सरकता है | खेत से खलिहान तक सरकता है | ||
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अँधेरे की तरह छा जाता है | अँधेरे की तरह छा जाता है | ||
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लचीली शांत हरी टहनियों पर | लचीली शांत हरी टहनियों पर | ||
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पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर | पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर | ||
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बेख़ौफ़ जम जाता है | बेख़ौफ़ जम जाता है | ||
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जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है | जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है | ||
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बोझ की तरह लद जाता है | बोझ की तरह लद जाता है | ||
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पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर | पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर | ||
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खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम | खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम | ||
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धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद | धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद | ||
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धुंध की तरह गिरता है | धुंध की तरह गिरता है | ||
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थके हुए उदास पीले चेहरों पर | थके हुए उदास पीले चेहरों पर | ||
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लोगों की आँखों में उतर आता है | लोगों की आँखों में उतर आता है | ||
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पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान | पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान | ||
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जब भी आता है | जब भी आता है | ||
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लाता है बुरे दिन | लाता है बुरे दिन | ||
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कल बन जाता है अकाल | कल बन जाता है अकाल | ||
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1981 में रचित | 1981 में रचित | ||
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22:02, 9 दिसम्बर 2009 का अवतरण
अकाल
जब आता है
अपने साथ लाता है
अड़ियल बैल से बुरे दिन
अकाल भेद नहीं करता
खेत, पेड़, पशु और आदमी में
बाज की तरह आकाश से उतरता है
हरे-भरे खेतों की छाती पर
फसल को जकड़ता है पंजों में
खेत से खलिहान तक सरकता है
अँधेरे की तरह छा जाता है
लचीली शांत हरी टहनियों पर
पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर
बेख़ौफ़ जम जाता है
जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है
बोझ की तरह लद जाता है
पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर
खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम
धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद
धुंध की तरह गिरता है
थके हुए उदास पीले चेहरों पर
लोगों की आँखों में उतर आता है
पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान
जब भी आता है
लाता है बुरे दिन
कल बन जाता है अकाल
1981 में रचित