भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुझाई गयी कविताएं" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('''पुकारता है घर मेरा''' लेखक एंव योगदान '''प्रवीण परिहार''')
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
  
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 +
इतने दिनों तक घर से दुर रहने के बाद घर की बहुत याद आती है। घरवालें, दोस्त, त्यौहार सभी कुछ।
 +
सभी पुकार-पुकार कर यहीं कहते है "अब तो आजा"।
 +
 +
'''पुकारता है घर मेरा'''
 +
 +
पुकारता है घर मेरा
 +
कहता है अब तो आजा।
 +
 +
वो रास्ते वो हर गली,
 +
वो हर दर वो दरवाजा,
 +
करते है सब तकाजा,
 +
कहते हैं अब तो आजा।
 +
 +
फाल्गुन की देखो होली,
 +
उडधंग मचाती टोली,
 +
होली के सारे रंग,
 +
सब दोस्तो के संग,
 +
करते है सब तकाजा,
 +
कहते हैं अब तो आजा।
 +
 +
प्यारी सी मेरी बहना,
 +
उसका भी है ये कहना,
 +
मेरे प्यारे भईया राजा,
 +
इस राखी पे घर को आजा,
 +
मेरी बहना और उसकी राखी,
 +
दोनो करती है यूँ तकाजा,
 +
कहती हैं अब तो आजा।
 +
 +
प्यारी सी मेरी मईयाँ,
 +
बनाती है जब सैवईयाँ,
 +
कहती है जल्दी आजा,
 +
जल्दी से आ के खाजा,
 +
वो खीर वो पताशा,
 +
करते है सब तकाजा,
 +
कहते हैं अब तो आजा।
 +
 +
मेरी भाँज़ी और भाँज़ें,
 +
सब उडधंग में है साँज़े,
 +
कहते है देखो - मामा,
 +
जल्दी से घर को आना,
 +
और तोहफे हमारे लाना,
 +
वो सब मुस्कुराकर ऐसे,
 +
करते है यूँ तकाजा,
 +
कहते हैं अब तो आजा।
 +
 +
लेखक एंव योगदान
 +
'''प्रवीण परिहार'''

18:09, 29 जुलाई 2006 का अवतरण

आप जिस कविता का योगदान करना चाहते हैं उसे इस पन्ने पर जोड दीजीये।
कविता जोडने के लिये ऊपर दिये गये Edit लिंक पर क्लिक करें। आपकी जोडी गयी कविता नियंत्रक द्वारा सही श्रेणी में लगा दी जाएगी।

  • कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी Delete मत करिये - इसमें केवल जोडिये।
  • कविता के साथ-साथ अपना नाम, कविता का नाम और लेखक का नाम भी अवश्य लिखिये।

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* इतने दिनों तक घर से दुर रहने के बाद घर की बहुत याद आती है। घरवालें, दोस्त, त्यौहार सभी कुछ। सभी पुकार-पुकार कर यहीं कहते है "अब तो आजा"।

पुकारता है घर मेरा

पुकारता है घर मेरा कहता है अब तो आजा।

वो रास्ते वो हर गली, वो हर दर वो दरवाजा, करते है सब तकाजा, कहते हैं अब तो आजा।

फाल्गुन की देखो होली, उडधंग मचाती टोली, होली के सारे रंग, सब दोस्तो के संग, करते है सब तकाजा, कहते हैं अब तो आजा।

प्यारी सी मेरी बहना, उसका भी है ये कहना, मेरे प्यारे भईया राजा, इस राखी पे घर को आजा, मेरी बहना और उसकी राखी, दोनो करती है यूँ तकाजा, कहती हैं अब तो आजा।

प्यारी सी मेरी मईयाँ, बनाती है जब सैवईयाँ, कहती है जल्दी आजा, जल्दी से आ के खाजा, वो खीर वो पताशा, करते है सब तकाजा, कहते हैं अब तो आजा।

मेरी भाँज़ी और भाँज़ें, सब उडधंग में है साँज़े, कहते है देखो - मामा, जल्दी से घर को आना, और तोहफे हमारे लाना, वो सब मुस्कुराकर ऐसे, करते है यूँ तकाजा, कहते हैं अब तो आजा।

लेखक एंव योगदान प्रवीण परिहार