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"अशआर १ / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर
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हरचन्द मेरी कुव्वते-गुफ़्तार है महबूस, | हरचन्द मेरी कुव्वते-गुफ़्तार है महबूस, | ||
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खामोश मगर तबअए-खुदआरा नहीं होती। | खामोश मगर तबअए-खुदआरा नहीं होती। | ||
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माअमूरा-ए-एहसास मे है हश्र-सा बर्पा, | माअमूरा-ए-एहसास मे है हश्र-सा बर्पा, | ||
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इन्सान को तज़लील गंवारा नहीं होती। | इन्सान को तज़लील गंवारा नहीं होती। | ||
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नालां हूं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथों, | नालां हूं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथों, | ||
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दुनिया मेरे अफ़कार की दुनिया नहीं होती। | दुनिया मेरे अफ़कार की दुनिया नहीं होती। | ||
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बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा, | बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा, | ||
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हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नहीं होती। | हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नहीं होती। | ||
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फ़ितरत की मशीयत भी बडी चीज है लेकिन, | फ़ितरत की मशीयत भी बडी चीज है लेकिन, | ||
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फ़ितरत कभी बेबस का सहारा नहीं होती। | फ़ितरत कभी बेबस का सहारा नहीं होती। | ||
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13:17, 6 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
हरचन्द मेरी कुव्वते-गुफ़्तार है महबूस,
खामोश मगर तबअए-खुदआरा नहीं होती।
माअमूरा-ए-एहसास मे है हश्र-सा बर्पा,
इन्सान को तज़लील गंवारा नहीं होती।
नालां हूं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथों,
दुनिया मेरे अफ़कार की दुनिया नहीं होती।
बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा,
हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नहीं होती।
फ़ितरत की मशीयत भी बडी चीज है लेकिन,
फ़ितरत कभी बेबस का सहारा नहीं होती।