"निर्मल शुक्ल / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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+ | ३ फरवरी १९४८ को जनपद लखनऊ (उ.प्र.) के ग्राम पूरबगाँव, बक्शी का तालाब में जन्मे निर्मल शुक्ल जी सेवा-निवृति के बाद लखनऊ में स्थाई रूप से आ बसे हैं। गीत साधना को पूरी निष्ठा से करने वाले इस गीतकार की रचनाएँ परंपरा, प्रयोग एवं प्रगति को सुन्दर ढंग से समोए हुए हैं । आपके गीत, नवगीत, दोहा, मुक्तक आदि बीसवीं सदी के श्रेष्ठ गीत, हिन्दी के मनमोहक गीत, काव्य मंजूषा, समकालीन दोहे, धूप के संगमरमर, गीत-नवांतर, उत्तरायण, शब्दपदी, ढाई आखर आदि महत्वपूर्ण शतकाधिक समवेत काव्य संकलनों एवं लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । अब तक रही कुँवारी धूप, अब है सुर्ख कनेर, एक और अरण्य काल, नील वनों के पार (सभी नवगीत संग्रह) अभी तक आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं। उत्तरायण साहित्य संस्थान की वर्ष १९९४ में स्थापना कर आप संस्थान की मुख्य पत्रिका ’उत्तरायण’ का विधिवत संपादन कर रहे हैं । उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निराला पुरस्कार सहित विभिन्न साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेक मानद उपाधियों एवं साहित्यिक सम्मानों से आपको विभूषित किया जा चुका है। | ||
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11:16, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
३ फरवरी १९४८ को जनपद लखनऊ (उ.प्र.) के ग्राम पूरबगाँव, बक्शी का तालाब में जन्मे निर्मल शुक्ल जी सेवा-निवृति के बाद लखनऊ में स्थाई रूप से आ बसे हैं। गीत साधना को पूरी निष्ठा से करने वाले इस गीतकार की रचनाएँ परंपरा, प्रयोग एवं प्रगति को सुन्दर ढंग से समोए हुए हैं । आपके गीत, नवगीत, दोहा, मुक्तक आदि बीसवीं सदी के श्रेष्ठ गीत, हिन्दी के मनमोहक गीत, काव्य मंजूषा, समकालीन दोहे, धूप के संगमरमर, गीत-नवांतर, उत्तरायण, शब्दपदी, ढाई आखर आदि महत्वपूर्ण शतकाधिक समवेत काव्य संकलनों एवं लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । अब तक रही कुँवारी धूप, अब है सुर्ख कनेर, एक और अरण्य काल, नील वनों के पार (सभी नवगीत संग्रह) अभी तक आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं। उत्तरायण साहित्य संस्थान की वर्ष १९९४ में स्थापना कर आप संस्थान की मुख्य पत्रिका ’उत्तरायण’ का विधिवत संपादन कर रहे हैं । उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निराला पुरस्कार सहित विभिन्न साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेक मानद उपाधियों एवं साहित्यिक सम्मानों से आपको विभूषित किया जा चुका है।
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