भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : बसंत आया, पिया न आए<br>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[मनोज भावुक]]</td>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सिराज फ़ैसल ख़ान]]</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बसंत आया, पिया न आए, पता नहीं क्यों जिया जलाये
+
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
पलाश-सा तन दहक उठा है, कौन विरह की आग बुझाये
+
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है
+
 
हवा बसंती, फ़िज़ा की मस्ती, लहर की कश्ती, बेहोश बस्ती
+
तुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगे
सभी की लोभी नज़र है मुझपे, सखी रे अब तो ख़ुदा बचाए
+
मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है
+
 
पराग महके, पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहके
+
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैँ
पिया अनाड़ी, पिया बेदर्दी, जिया की बतिया समझ न पाए
+
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है ।
+
 
नज़र मिले तो पता लगाऊं की तेरे मन का मिजाज़ क्या है
+
भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैँ
मगर कभी तू इधर तो आए नज़र से मेरे नज़र मिलाये
+
पानी पीकर जीते हैं मँहगी सब तरकारी है
+
 
अभी भी लम्बी उदास रातें, कुतर-कुतर के जिया को काटे
+
जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो
असल में ‘भावुक’ खुशी तभी है जो ज़िंदगी में बसंत आए</pre>
+
केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है </pre>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>

14:09, 13 फ़रवरी 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
  रचनाकार: सिराज फ़ैसल ख़ान
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है ।

तुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगे
मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैँ
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है ।

भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैँ
पानी पीकर जीते हैं मँहगी सब तरकारी है ।

जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो
केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है ।