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"कवि गगन विहारी / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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कैसे नरपिशाच हैं कवि गगन विहारी । | कैसे नरपिशाच हैं कवि गगन विहारी । | ||
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राम नाम वे लुटा रहे, लूट सके तो लूट । | राम नाम वे लुटा रहे, लूट सके तो लूट । | ||
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धर्म की ध्वजा उठाए, रक्तपात में लीन । | धर्म की ध्वजा उठाए, रक्तपात में लीन । | ||
− | + | जटाधारी की आस हैं कवि गगन विहारी ।। | |
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साम्प्रदायिक विद्वेष बना है संस्कृति का सार । | साम्प्रदायिक विद्वेष बना है संस्कृति का सार । | ||
− | + | तिमिर में प्रकाश हैं कवि गगन विहारी ।। | |
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महाकाल के साथ वे घूमें, ले हिंसा उन्माद । | महाकाल के साथ वे घूमें, ले हिंसा उन्माद । | ||
− | + | जीवन का उच्छवास हैं कवि गगन विहारी ।। | |
− | जीवन का उच्छवास हैं कवि गगन विहारी | + | |
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हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें बड़ी बड़ी । | हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें बड़ी बड़ी । | ||
− | + | पर मुस्लिमों की लाश हैं कवि गगन विहारी ।। | |
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धर्म ही अब देश हो गया, विधर्मी देशद्रोही । | धर्म ही अब देश हो गया, विधर्मी देशद्रोही । | ||
− | + | भारत का संत्रास हैं कवि गगन विहारी ।। | |
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12:49, 8 फ़रवरी 2011 का अवतरण
कैसे नरपिशाच हैं कवि गगन विहारी ।
लाल रक्त की प्यास हैं कवि गगन विहारी ।।
राम नाम वे लुटा रहे, लूट सके तो लूट ।
हि्न्दू जन का विश्वास हैं कवि गगन विहारी ।।
धर्म की ध्वजा उठाए, रक्तपात में लीन ।
जटाधारी की आस हैं कवि गगन विहारी ।।
साम्प्रदायिक विद्वेष बना है संस्कृति का सार ।
तिमिर में प्रकाश हैं कवि गगन विहारी ।।
महाकाल के साथ वे घूमें, ले हिंसा उन्माद ।
जीवन का उच्छवास हैं कवि गगन विहारी ।।
हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें बड़ी बड़ी ।
पर मुस्लिमों की लाश हैं कवि गगन विहारी ।।
धर्म ही अब देश हो गया, विधर्मी देशद्रोही ।
भारत का संत्रास हैं कवि गगन विहारी ।।
(2003)