भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"राजा अंधा है/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
जैसे मियाँ काठ का वैसी | जैसे मियाँ काठ का वैसी | ||
सन की दाढ़ी है, | सन की दाढ़ी है, | ||
− | चोर सिपाही की आपस | + | चोर सिपाही की आपस में |
यारी गाढ़ी है, | यारी गाढ़ी है, | ||
मंदिर का हर एक पुजारी | मंदिर का हर एक पुजारी |
09:22, 30 नवम्बर 2011 का अवतरण
इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है,
साँपों के भी पड़ी गले में
स्वागत माला है ।
तेल चमेली का लगता है
यहाँ छछूंदर के,
काली बिल्ली नोच रही है
पंख कबूतर के,
दीपक पी जाता ख़ुद ही
अपना उजियाला है ।
जैसे मियाँ काठ का वैसी
सन की दाढ़ी है,
चोर सिपाही की आपस में
यारी गाढ़ी है,
मंदिर का हर एक पुजारी
पीता हाला है ।
अपना उल्लू सीधा करना
सबका धंधा है,
किससे हाल कहें नगरी का
राजा अंधा है,
पढ़े लिखों के मुँह सुविधा का
लटका ताला है ।
इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है ।