भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सौन्दर्य / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(कोई अंतर नहीं)

18:27, 19 मई 2008 का अवतरण


सड़क के दोनों तरफ़

ख़ूब लम्बे पेड़

ऊपर उठकर मिलते हुए

ललाट से सटाते ललाट

छान रहे सूर्य-किरण


जैसे ही आएगी आँधी या बारिश

दौड़ेंगे राहगीर

घंटियाँ धुनते दौड़ेंगे रिक्शे

दौड़ेगा हाथ में हाथ बाँध सारा परिवार

देखते-देखते सूनी पड़ जाएगी यह राह ।


पछाड़ खा रहे हैं अन्धड़ में पेड़

ललाट से ललाट टकराते

मथ रहे हैं बादलों से भरा आकाश


गरजता है गगन

और बिजलियों को देह में सोखने को उद्यत

गरजते हैं धरती की ओर से

ये वृक्ष


ठहरेगा कौन इस राह पर आज

देखेगा कौन इन संघर्षरत वृक्षों का

दुर्द्धर्ष सौन्दर्य ?