भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपना घर / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} <poem> </poem>)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
कहाँ है मेरा घर ?
 +
जाना चाहती हूँ ,
 +
रहना चाहती हूँ अब वहीं !
 +
छोटी थी तो समझ में नहीं आता था ,
 +
सुनती थी पराई अमानत हूँ,
 +
अपने घर जाकर जो मन आये करना !
 +
धीरे-धीरे समझ में आता गया
 +
कि यह  घर मेरा नहीं ।
 +
पर फिर यहाँ  जन्म क्यों लिया ?
 +
*
 +
बड़ी हुई - घर ढूँढा जाने लगा  जहाँ भेज दी जाऊं ,
 +
उऋण हो जायें ये लोग ,भार मुक्त !
 +
चुपचाप चली आई नये लोगों में !
 +
पर ये घर तो उनका था
 +
जो लोग यहीं रहते आये थे !
 +
*
 +
मैं नवागता ,
 +
ढालती रही अपने को उनके हिसाब से !
 +
नाम उनका ,धाम उनका ,
 +
सारी पहचान उनकी !
 +
बनाये रखने की जिम्मेदारी मेरी थी ,
 +
निभाती रही !
 +
निबटाते -निबटाते चुक गई ,
 +
अब भी रह रही हूँ पराये घरों में ,
 +
सबके अपने ढंग !
 +
*
 +
ढाल रही हूँ फिर अपने को
 +
कितनी बार ,कितनी तरह !
 +
अंतर्मन बार-बार  पुकारता है -
 +
'चलो अपने घर चलो !'
 +
जनम-जनम से गुमनाम भटक रही हूं !
 +
कहाँ है मेरा घर !
  
 
</poem>
 
</poem>

08:17, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

कहाँ है मेरा घर ?
जाना चाहती हूँ ,
रहना चाहती हूँ अब वहीं !
छोटी थी तो समझ में नहीं आता था ,
सुनती थी पराई अमानत हूँ,
अपने घर जाकर जो मन आये करना !
धीरे-धीरे समझ में आता गया
कि यह घर मेरा नहीं ।
पर फिर यहाँ जन्म क्यों लिया ?


बड़ी हुई - घर ढूँढा जाने लगा जहाँ भेज दी जाऊं ,
उऋण हो जायें ये लोग ,भार मुक्त !
चुपचाप चली आई नये लोगों में !
पर ये घर तो उनका था
जो लोग यहीं रहते आये थे !


 मैं नवागता ,
ढालती रही अपने को उनके हिसाब से !
नाम उनका ,धाम उनका ,
सारी पहचान उनकी !
बनाये रखने की जिम्मेदारी मेरी थी ,
निभाती रही !
निबटाते -निबटाते चुक गई ,
अब भी रह रही हूँ पराये घरों में ,
सबके अपने ढंग !


ढाल रही हूँ फिर अपने को
कितनी बार ,कितनी तरह !
अंतर्मन बार-बार पुकारता है -
'चलो अपने घर चलो !'
जनम-जनम से गुमनाम भटक रही हूं !
कहाँ है मेरा घर !