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− | + | मुनि-मन-अगम, सुगत माइ-बापु सों। | |
− | + | कृपासिंधु, सहज सखा, सनेही आपु सों।। | |
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− | + | लोक-बेद-बिदित बड़ो न रघुनाथ सों । | |
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+ | सब दिन सब देस, सबहिकें साथ सों।। | ||
− | + | स्वामी सरबग्य सों चलै न चोरी चारकी। | |
− | + | प्रीति पहिचानि यह रीति दरबारकी।। | |
− | + | काय न कलेस-लेस, लेत मान मनकी। | |
− | + | सुमिरे सकुचि रूचि जोगवत जनकी । | |
− | + | रीझे बस होत, खीजे देत निज धाम रे। | |
− | + | फलत सकल फल कामतरू नाम रे।। | |
− | + | बेंचे खोटो दाम न मिलै, न राखे काम रे। | |
− | तुलसी | + | सोऊ तुलसी निवाज्यो राजराम रे।। |
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− | + | रामसों बडो है कौन, मोसों कौन छोटेा। | |
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− | + | लोक कहै रामको गुलाम हौं कहावौं। | |
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− | + | एतो बडो अपराध भौ न मन बावौं।। | |
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+ | पाथ माथे चढ़े तृन तुलसी ज्यांे नीचो। | ||
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+ | बोरत न बारि ताहि जानि आपु सींचो।। | ||
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13:24, 8 मार्च 2011 के समय का अवतरण
विनयावली
ऐसेहू साहब की सेवा सों होत चोरू रे।
अपनी न बूझ, न कहै को राँडरोरू रे।।
मुनि-मन-अगम, सुगत माइ-बापु सों।
कृपासिंधु, सहज सखा, सनेही आपु सों।।
लोक-बेद-बिदित बड़ो न रघुनाथ सों ।
सब दिन सब देस, सबहिकें साथ सों।।
स्वामी सरबग्य सों चलै न चोरी चारकी।
प्रीति पहिचानि यह रीति दरबारकी।।
काय न कलेस-लेस, लेत मान मनकी।
सुमिरे सकुचि रूचि जोगवत जनकी ।
रीझे बस होत, खीजे देत निज धाम रे।
फलत सकल फल कामतरू नाम रे।।
बेंचे खोटो दाम न मिलै, न राखे काम रे।
सोऊ तुलसी निवाज्यो राजराम रे।।
म्ेारो भलो कियो राम आपनी भलाई।
हौं तो साईं-द्रोही पै सेवक-हित साईं।।
रामसों बडो है कौन, मोसों कौन छोटेा।
राम सेा खरो हैं कौन, मोसो कौन खोटो।।
लोक कहै रामको गुलाम हौं कहावौं।
एतो बडो अपराध भौ न मन बावौं।।
पाथ माथे चढ़े तृन तुलसी ज्यांे नीचो।
बोरत न बारि ताहि जानि आपु सींचो।।