'''पद 221 से 230 तक'''
तुलसी (225)भरोसो और आइहै उर ताके। कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।। कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके। कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।। हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु -सो सुन्यो न साके। उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।। मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके। तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।
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