भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 26" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=व…)
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
'''पद 251 से 260 तक'''
 
'''पद 251 से 260 तक'''
  
तुलसी प्रभु  
+
(251)
 +
श्री राम! रावरो सुभाउ, गुन सील महिमा प्रभाउ,
 +
जान्यो हर, हनुमान, लखन, भरत।
 +
 
 +
जिन्हके हिये-सुथरू राम-प्रेम-सुरतरू,
 +
लसत सरस सुख फूलत फरत।।
 +
 
 +
आप माने स्वामी कै सखा सुभाइ भाइ, 
 +
पति, ते सनेेह-सावधान रहत डरत।
 +
 
 +
साहिब-सेवक-रीति, प्रीति-परिमिति,
 +
नीति, नेमको निबाह एक टेक न टरत।।
 +
 
 +
सुक-सनकादि, प्रहलाद-नारदादि कहैं,
 +
रामकी  भगति बड़ी बिरति-निरत।
 +
 
 +
जाने बिनु भगति न, जानिबो तिहारे हाथ,
 +
समुझि सयाने नाथ! पगनि परत। ।
 +
 
 +
छ-मत बिमत, न पुरान मत, एक मत,
 +
नेति-नेति-नेति नित निगम करत।
 +
 
 +
औरनिकी कहा चली? एकै बात भलै भली,
 +
राम-नाम लिये तुलसी हू से तरत।।
 +
 
 +
(253)
 +
श्री राम ! राखिये सरन, राखि आये सब दिन।
 +
 
 +
बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
 +
आरत-प्रनत -पाल को है प्रभु बिन।।
 +
 
 +
लाले पाले, पोषे तोषे आलसी-अभागी -अघी,
 +
नाथ! पै अनाथनिसों भये न उरिन।
 +
 
 +
स्वामी समरथ ऐसो, हौं होति हिये  घनी घिन।।
 +
खीझि-रीझि , बिहँसि-अनख, क्यों हूँ एक बार।
 +
 
 +
‘तुलसी तू मेरो’ , बलि, कहियत किन?
 +
जाहिं सूल निरमूल, होहिं सुख अनुकूल,
 +
महाराज राम! रावरी सौं, तेहि छिन।।
 +
 
 +
(254)
 +
श्री राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है।
 +
 
 +
सुजन-सनेही, गुरू-साहिब, सखा-सुहृदय,
 +
राम-नाम प्रेम -पन अबिचल बितु हैं। ।
 +
 
 +
सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि,
 +
लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है।
 +
 
 +
नामको भरोसो-बल चारिहू फलको फल,
 +
सुमिरिये छाड़ि छल, भलो कृतु है। ।
 +
 
 +
स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम,
 +
राम-नाम सारिखेा न और हितु है,
 +
 
 +
तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही,
 +
सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है।।
  
 
</poem>
 
</poem>

17:03, 12 मार्च 2011 का अवतरण

पद 251 से 260 तक

(251)
श्री राम! रावरो सुभाउ, गुन सील महिमा प्रभाउ,
जान्यो हर, हनुमान, लखन, भरत।

 जिन्हके हिये-सुथरू राम-प्रेम-सुरतरू,
 लसत सरस सुख फूलत फरत।।

आप माने स्वामी कै सखा सुभाइ भाइ,
पति, ते सनेेह-सावधान रहत डरत।

साहिब-सेवक-रीति, प्रीति-परिमिति,
नीति, नेमको निबाह एक टेक न टरत।।

सुक-सनकादि, प्रहलाद-नारदादि कहैं,
 रामकी भगति बड़ी बिरति-निरत।

जाने बिनु भगति न, जानिबो तिहारे हाथ,
समुझि सयाने नाथ! पगनि परत। ।

छ-मत बिमत, न पुरान मत, एक मत,
नेति-नेति-नेति नित निगम करत।

औरनिकी कहा चली? एकै बात भलै भली,
राम-नाम लिये तुलसी हू से तरत।।

(253)
श्री राम ! राखिये सरन, राखि आये सब दिन।

बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
आरत-प्रनत -पाल को है प्रभु बिन।।

लाले पाले, पोषे तोषे आलसी-अभागी -अघी,
नाथ! पै अनाथनिसों भये न उरिन।

स्वामी समरथ ऐसो, हौं होति हिये घनी घिन।।
खीझि-रीझि , बिहँसि-अनख, क्यों हूँ एक बार।

‘तुलसी तू मेरो’ , बलि, कहियत किन?
जाहिं सूल निरमूल, होहिं सुख अनुकूल,
महाराज राम! रावरी सौं, तेहि छिन।।

(254)
श्री राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है।

सुजन-सनेही, गुरू-साहिब, सखा-सुहृदय,
राम-नाम प्रेम -पन अबिचल बितु हैं। ।

सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि,
लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है।

नामको भरोसो-बल चारिहू फलको फल,
 सुमिरिये छाड़ि छल, भलो कृतु है। ।

 स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम,
राम-नाम सारिखेा न और हितु है,

तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही,
सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है।।