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"परिणीता (कविता) / गणेश पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
पके जिसके
+
पके जिसके काले लम्बे बाल असमय
काले लंबे बाल
+
हुए गोरे चिकने गाल अकोमल
असमय
+
हुए
+
गोरे चिकने गाल
+
अकोमल
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
छपी जिसके माथे पर अनचाही इबारत
छपी
+
टूटा जिसका कोई क़ीमती खिलौना
जिसके माथे पर
+
एक रेत का महल था जिसका
अनचाही इबारत
+
एक पल में पानी में था
टूटा जिसका
+
कितनी हलचल थी कितनी पीड़ा थी
कोई क़ीमती खिलौना
+
भीतर एक आहत सिंहनी कितनी उदास थी
 
+
एक रेत का महल था
+
जिसका
+
एक पल में
+
पानी में था
+
कितनी हलचल थी
+
कितनी पीड़ा थी
+
भीतर
+
 
+
एक आहत सिंहनी
+
कितनी उदास थी
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
ढल गया था चान्द जिसका
ढ़ल गया था
+
और चान्द से भी दूर हो गया प्यार जिसका
चाँद जिसका
+
और चांद से भी
+
दूर
+
हो गया
+
प्यार जिसका
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
श्रीहीन हो गया जिसका मुख
श्रीहीन हो गया
+
खो गया था जिसका सुख, यह तुम थी !
जिसका मुख
+
यह तुम थी एक-एक दिन
खो गया था
+
अपने से लड़ती-झगड़ती खुद से करती जिरह
जिसका सुख
+
यह तुम थी ! औरत और मर्द दोनों का काम करती
 +
और रह-रह कर किसी को याद करती
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
कभी गुलमोहर का सुर्ख़ फूल
यह तुम थी
+
और कभी नीम की उदास पीली पत्ती
एक-एक दिन
+
अपने से लड़ती-झगड़ती
+
ख़ुद से करती जिरह
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
अलीनगर की भीड़ में अपनी बेटी के साथ
औरत और मर्द
+
अकेली कुछ ख़रीदने निकली थी
दोनों का काम करती
+
और रह-रह कर
+
किसी को याद करती
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
कभी
 
गुलमोहर का सुर्ख़ फूल
 
और कभी
 
नीम की उदास पीली पत्ती
 
यह तुम थी !
 
 
अलीनगर की भीड़ में
 
अपनी बेटी के साथ
 
अकेली
 
कुछ ख़रीदने निकली थी
 
यह तुम थी !
 
 
 
यह मैं था
 
यह मैं था
साथ नहीं था
+
साथ नहीं था आसपास था
आसपास था
+
मैं भी अकेला था तुम भी अकेली थी
मैं भी अकेला था
+
मुझसे बेख़बर यह तुम थी !
तुम भी अकेली थी
+
मुझसे बेख़बर
+
यह तुम थी !
+
  
 
बहुमूल्य
 
बहुमूल्य
चमचमाती
+
चमचमाती और भागती हुई
और भागती हुई
+
कार के पैरों के नीचे एक मरियल काले पिल्ले-सा
कार के पैरों के नीचे
+
एक मरियल काले पिल्ले-सा
+
 
मर रहा था किसी का प्यार
 
मर रहा था किसी का प्यार
और
+
और तुम बेख़बर थी
तुम बेख़बर थी
+
यह तुम थी ! जिसकी किताब में लग गया था
यह तुम थी !
+
 
+
जिसकी क़िताब में
+
लग गया था
+
 
वक़्त का दीमक
 
वक़्त का दीमक
कुतर गए थे कुछ शब्द
+
कुतर गए थे कुछ शब्द कुछ नाम कुछ अनुभव
कुछ नाम
+
एक छोटी-सी दुनिया अब नहीं थी
कुछ अनुभव
+
जिसकी दुनिया में यह तुम थी !
एक छोटी-सी
+
जो अपनी किताब में थी और नहीं थी
दुनिया अब नहीं थी
+
जो अपने भीतर थी और नहीं थी
जिसकी दुनिया में
+
घर में थी और नहीं थी
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
जो अपनी क़िताब में
 
थी और नहीं थी
 
जो अपने भीतर थी
 
और नहीं थी
 
घर में थी
 
और नहीं थी
 
यह तुम थी !
 
 
 
बदल गई थी
 
बदल गई थी
 
जिसके घर और देह की दुनिया
 
जिसके घर और देह की दुनिया
 
जुबान और आँख की भाषा
 
जुबान और आँख की भाषा
 
बदल गया था
 
बदल गया था
जिसके चश्मे का नंबर
+
जिसके चश्मे का नम्बर और मकान का पता
और मकान का पता
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
जिसकी आलीशान इमारत ढह चुकी थी
जिसकी आलीशान इमारत
+
मलबे में ग़ुम हो चुकी थी जिसकी अँगूठी
ढह चुकी थी
+
और हार छिप गया था किसी हार में
मलबे में गुम हो चुकी थी
+
जिसकी अँगूठी
+
और हार
+
छिप गया था किसी हार में
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
  
 
जीवन के आधे रास्ते में
 
जीवन के आधे रास्ते में
बेहद थकी हुई
+
बेहद थकी हुई झुकी हुई
झुकी हुई
+
 
देखती हुई अपनी परछाईं
 
देखती हुई अपनी परछाईं
 
समय के दर्पण में
 
समय के दर्पण में
जो इससे पहले
+
जो इससे पहले कभी
कभी
+
 
इतनी कमज़ोर न थी
 
इतनी कमज़ोर न थी
 
इतनी उदास न थी
 
इतनी उदास न थी
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तुम थी !!
 
तुम थी !!
 
मेरी तुम !!!
 
मेरी तुम !!!
जो अहर्निष
+
जो अहर्निश
 
मेरे पास थी
 
मेरे पास थी
 
जिसकी त्वचा
 
जिसकी त्वचा
 
मेरी त्वचा की सखी थी
 
मेरी त्वचा की सखी थी
 
+
जिसकी सांसों का
जिसकी साँसों का
+
 
मेरी सांसों के संग
 
मेरी सांसों के संग
 
आना-जाना था
 
आना-जाना था
मेरे बिस्तर का
+
मेरे बिस्तर का आधा हिस्सा जिसका था
आधा हिस्सा जिसका था
+
और जिसका दर्द मेरे दर्द का पड़ोसी था
और जिसका दर्द
+
जिसके पैर बन्धे थे मेरे पैरों से
मेरे दर्द का पड़ोसी था
+
जिसके बाल कुछ ही कम सफ़ेद थे
 
+
जिसके पैर बँधे थे
+
मेरे पैरों से
+
जिसके बाल
+
कुछ ही कम सफेद थे
+
 
मेरे बालों से
 
मेरे बालों से
जिसके माथे की सिलवटें
+
जिसके माथे की सिलवटें कम नहीं थीं मेरे माथे से
कम नहीं थीं मेरे माथे से
+
जिससे मुझे उस तरह प्रेम न था
जिससे
+
जैसा कोई-कोई प्रेमी और प्रेमिका किताबों में करते थे
मुझे उस तरह प्रेम न था
+
पर अप्रेम न था कुछ था ज़रूर
जैसा कोई-कोई प्रेमी
+
पर शब्द न थे जो भी था एक अनुभव था
और प्रेमिका
+
किताबों में करते थे
+
 
+
पर अप्रेम न था
+
कुछ था जरूर
+
पर शब्द न थे
+
जो भी था
+
एक अनुभव था
+
 
+
 
एक स्त्री थी
 
एक स्त्री थी
जो
+
जो दिन-रात खटती थी
दिन-रात खटती थी
+
सूर्य देवता से पहले चलना शुरू करती थी
सूर्य देवता से पहले
+
पवन देवता से पहले दौड़ पड़ती थी
चलना शुरू करती थी
+
पवन देवता से पहले
+
दौड़ पड़ती थी
+
 
हाथ में झाड़ू लेकर
 
हाथ में झाड़ू लेकर
 
 
बच्चों के जागने से पहले
 
बच्चों के जागने से पहले
 
दूध का गिलास लेकर
 
दूध का गिलास लेकर
खड़ी हो जाती थी
+
खड़ी हो जाती थी मुस्तैदी से
मुस्तैदी से
+
 
+
 
अख़बार से भी पहले
 
अख़बार से भी पहले
चाय की प्याली
+
चाय की प्याली रख जाती थी
रख जाती थी
+
मेरे होठों के पास मीठे गन्ने से भी मीठी
मेरे होठों के पास
+
 
+
मीठे गन्ने से भी मीठी
+
 
यह तुम थी
 
यह तुम थी
 
मेरे घर की रसोई में
 
मेरे घर की रसोई में
सुबह-शाम
+
सुबह-शाम सूखी लकड़ी जैसी जलती
सूखी लकड़ी जैसी जलती
+
और खाने की मेज़ पर
और खाने की मेज पर
+
 
सिर झुकाकर
 
सिर झुकाकर
डाँट खाने के लिए
+
डाँट खाने के लिए तैयार रहती
तैयार रहती
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
 
बावर्ची
 
बावर्ची
 
धोबी
 
धोबी
दर्जी
+
दर्ज़ी
पेंटर
+
पेण्टर
 
टीचर
 
टीचर
खजांची
+
खजाँची
 
राजगीर
 
राजगीर
 
मेहतर
 
मेहतर
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क्या नहीं थी तुम !
 
क्या नहीं थी तुम !
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
 
क्या हुआ
 
क्या हुआ
जो इस जन्म में
+
जो इस जन्म में मेरी प्रेमिका नहीं थी
मेरी प्रेमिका नहीं थी
+
क्या पता मेरे हज़ार जन्मों की प्रेयसी
क्या पता
+
तुम्हारे अन्तस्तल में छुपी बैठी हो
मेरे हज़ार जन्मों की प्रेयसी
+
तुम्हारे अंतस्तल में
+
छुपी बैठी हो
+
 
और तुम्हें ख़बर न हो
 
और तुम्हें ख़बर न हो
 
+
यह कैसी उलझन थी मेरे भीतर कई युगों से
यह कैसी उलझन थी
+
यह तुम थी अपने को मेरे और पास लाती थी
मेरे भीतर कई युगों से
+
जब-जब मैं अपने को तुमसे दूर करता था
यह तुम थी
+
अपने को
+
मेरे और पास लाती थी
+
जब-जब मैं अपने को
+
तुमसे दूर करता था
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
जो करती थी
+
जो करती थी मेरे गुनाहों की अनदेखी
मेरे गुनाहों की अनदेखी
+
  
 
मेरे खेतों में
 
मेरे खेतों में
अपने गीतों के संग
+
अपने गीतों के संग पोछीटा मार कर
पोछीटा मार कर
+
रोपाई करती हुई मज़दूरनी कौन थी!
रोपाई करती हुई
+
मज़दूरनी कौन थी!
+
 
अपनी हमजोलियों के साथ
 
अपनी हमजोलियों के साथ
हँसी-ठिठोली के बीच
+
हंसी-ठिठोली के बीच
बड़े मन से मेरे खेतों में
+
बड़े मन से मेरे खेतों में एक-एक खर-पतवार
एक-एक खर-पतवार
+
ढूँढ़-ढूँढ़ कर निराई करती हुई
ढूँढ-ढूँढ कर
+
यह तन्वंगी कौन थी!
निराई करती हुई
+
मेरे जीवन के भट्ठे पर पिछले तीस साल से
यह तन्वंगी कौन थी !
+
ईंट पकाती हुई झाँवाँ जैसी यह स्त्री कौन थी
 
+
यह तुम थी!
मेरे जीवन के भट्ठे पर
+
पिछले तीस साल से
+
ईंट पकाती हुई
+
झाँवाँ जैसी
+
यह स्त्री कौन थी
+
यह तुम थी !
+
 
+
और यह मैं था
+
एक अभिशप्त मेघ !
+
जिसके नीचे
+
न कोई धरती थी
+
न ऊपर कोई आकाश
+
और जिसके भीतर
+
पानी की जगह
+
प्यास ही प्यास
+
  
 +
और यह मैं था एक अभिशप्त मेघ !
 +
जिसके नीचे न कोई धरती थी न ऊपर कोई आकाश
 +
और जिसके भीतर पानी की जगह प्यास ही प्यास
 
कभी
 
कभी
मैं ढू़ंढ़ता उस तुम को !
+
मैं ढू़ँढ़ता उस तुम को !
 
और कभी इस तुम को !
 
और कभी इस तुम को !
 
+
कभी किसी की प्यास न बुझाई
कभी
+
किसी की प्यास न बुझाई
+
 
न किसी के तप्त अंतस्तल को
 
न किसी के तप्त अंतस्तल को
 
सींचा
 
सींचा
न किसी को कोई
+
न किसी को कोई उम्मीद बन्धाई
उम्मीद बँधाई
+
यह मैं था प्रेम का बंजर
यह मैं था
+
 
+
प्रेम का बंजर
+
 
इतनी बड़ी पृथ्वी का
 
इतनी बड़ी पृथ्वी का
एक मृत
+
एक मृत और विदीर्ण टुकड़ा
और विदीर्ण टुकड़ा
+
अपनी विकलता और विफलता के गुनाह में
अपनी विकलता
+
और विफलता के गुनाह में
+
 
डूबा
 
डूबा
यह मैं था!
+
यह मैं था ! यह मेरे हज़ार गुनाह थे
 
+
और तुम मेरे गुनाहों की देवी थी !
यह मेरे हज़ार गुनाह थे
+
और तुम
+
मेरे गुनाहों की देवी थी !
+
 
यह तुम थी!
 
यह तुम थी!
 
जिससे
 
जिससे
 
मेरी छोटी-सी दुनिया में
 
मेरी छोटी-सी दुनिया में
गौरैया की चोंच में
+
गौरैया की चोंच में अँटने भर का
अँटने भर का
+
उसके पँख पर फैलने भर का
उसके पंख पर फैलने भर का
+
 
एक छोटा-सा जीवन था
 
एक छोटा-सा जीवन था
 
 
एक छोटी-सी खिड़की थी
 
एक छोटी-सी खिड़की थी
 
जहाँ मैं खड़ा था
 
जहाँ मैं खड़ा था
 
सुप्रभात का एक छोटा-सा
 
सुप्रभात का एक छोटा-सा
दृश्यखंड था
+
दृश्यखण्ड था
यह तुम थी !
+
यह तुम थी ! मेरी आँखों के सामने
 
+
मेरी आँखों के सामने
+
 
मेरी तुम थी
 
मेरी तुम थी
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
+
मेरे गुनाहों की देवी!
मेरे गुनाहों की देवी !
+
 
मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा दो
 
मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा दो
 
चाहे अपनी करुणा में
 
चाहे अपनी करुणा में
 
सजा लो मुझे
 
सजा लो मुझे
 
अपनी लाल बिन्दी की तरह
 
अपनी लाल बिन्दी की तरह
अपने अँधेरे में भासमान
+
अपने अन्धेरे में भासमान इस उजास का क्या करूँ
 
+
जो तुमसे है इस उम्मीद का क्या करूँ
इस उजास का क्या करूँ
+
आत्मा की आवाज का क्या करूँ
जो तुमसे है
+
अतीत का क्या करूँ अपने आज का क्या करूँ
इस उम्मीद का क्या करूँ
+
 
+
आत्मा की आवाज़ का क्या करूँ
+
अतीत का क्या करूँ
+
अपने आज का क्या करूँ
+
 
तुम्हारा क्या करूँ
 
तुम्हारा क्या करूँ
जो
+
जो मेरे जीवन की सखी थी और सखी है
मेरे जीवन की सखी थी
+
और सखी है
+
 
+
 
जिसके संग लिए सात फेरे
 
जिसके संग लिए सात फेरे
 
मेरे सात जन्म के फेरे हैं
 
मेरे सात जन्म के फेरे हैं
जो
+
जो मेरी आत्मा की चिरसंगिनी थी मेरा अन्तिम ठौर है
मेरी आत्मा की चिरसंगिनी थी
+
मेरा अंतिम ठौर है
+
 
यह तुम थी !
 
यह तुम थी !
 
 
यह तुम हो !!
 
यह तुम हो !!
मेरी मीता                        
+
मेरी मीता                    
 
मेरी परिणीता ।
 
मेरी परिणीता ।
 
</poem>
 
</poem>

16:31, 1 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

यह तुम थी !
पके जिसके काले लम्बे बाल असमय
हुए गोरे चिकने गाल अकोमल
यह तुम थी !
छपी जिसके माथे पर अनचाही इबारत
टूटा जिसका कोई क़ीमती खिलौना
एक रेत का महल था जिसका
एक पल में पानी में था
कितनी हलचल थी कितनी पीड़ा थी
भीतर एक आहत सिंहनी कितनी उदास थी
यह तुम थी !
ढल गया था चान्द जिसका
और चान्द से भी दूर हो गया प्यार जिसका
यह तुम थी !
श्रीहीन हो गया जिसका मुख
खो गया था जिसका सुख, यह तुम थी !
यह तुम थी एक-एक दिन
अपने से लड़ती-झगड़ती खुद से करती जिरह
यह तुम थी ! औरत और मर्द दोनों का काम करती
और रह-रह कर किसी को याद करती
यह तुम थी !
कभी गुलमोहर का सुर्ख़ फूल
और कभी नीम की उदास पीली पत्ती
यह तुम थी !
अलीनगर की भीड़ में अपनी बेटी के साथ
अकेली कुछ ख़रीदने निकली थी
यह तुम थी !
यह मैं था
साथ नहीं था आसपास था
मैं भी अकेला था तुम भी अकेली थी
मुझसे बेख़बर यह तुम थी !

बहुमूल्य
चमचमाती और भागती हुई
कार के पैरों के नीचे एक मरियल काले पिल्ले-सा
मर रहा था किसी का प्यार
और तुम बेख़बर थी
यह तुम थी ! जिसकी किताब में लग गया था
वक़्त का दीमक
कुतर गए थे कुछ शब्द कुछ नाम कुछ अनुभव
एक छोटी-सी दुनिया अब नहीं थी
जिसकी दुनिया में यह तुम थी !
जो अपनी किताब में थी और नहीं थी
जो अपने भीतर थी और नहीं थी
घर में थी और नहीं थी
यह तुम थी !
बदल गई थी
जिसके घर और देह की दुनिया
जुबान और आँख की भाषा
बदल गया था
जिसके चश्मे का नम्बर और मकान का पता
यह तुम थी !
जिसकी आलीशान इमारत ढह चुकी थी
मलबे में ग़ुम हो चुकी थी जिसकी अँगूठी
और हार छिप गया था किसी हार में
यह तुम थी !

जीवन के आधे रास्ते में
बेहद थकी हुई झुकी हुई
देखती हुई अपनी परछाईं
समय के दर्पण में
जो इससे पहले कभी
इतनी कमज़ोर न थी
इतनी उदास न थी
यह तुम थी
किसी की परिणीता !

और
यह !
तुम थी !!
मेरी तुम !!!
जो अहर्निश
मेरे पास थी
जिसकी त्वचा
मेरी त्वचा की सखी थी
जिसकी सांसों का
मेरी सांसों के संग
आना-जाना था
मेरे बिस्तर का आधा हिस्सा जिसका था
और जिसका दर्द मेरे दर्द का पड़ोसी था
जिसके पैर बन्धे थे मेरे पैरों से
जिसके बाल कुछ ही कम सफ़ेद थे
मेरे बालों से
जिसके माथे की सिलवटें कम नहीं थीं मेरे माथे से
जिससे मुझे उस तरह प्रेम न था
जैसा कोई-कोई प्रेमी और प्रेमिका किताबों में करते थे
पर अप्रेम न था कुछ था ज़रूर
पर शब्द न थे जो भी था एक अनुभव था
एक स्त्री थी
जो दिन-रात खटती थी
सूर्य देवता से पहले चलना शुरू करती थी
पवन देवता से पहले दौड़ पड़ती थी
हाथ में झाड़ू लेकर
बच्चों के जागने से पहले
दूध का गिलास लेकर
खड़ी हो जाती थी मुस्तैदी से
अख़बार से भी पहले
चाय की प्याली रख जाती थी
मेरे होठों के पास मीठे गन्ने से भी मीठी
यह तुम थी
मेरे घर की रसोई में
सुबह-शाम सूखी लकड़ी जैसी जलती
और खाने की मेज़ पर
सिर झुकाकर
डाँट खाने के लिए तैयार रहती
यह तुम थी !
बावर्ची
धोबी
दर्ज़ी
पेण्टर
टीचर
खजाँची
राजगीर
मेहतर
सेविका
और दाई
क्या नहीं थी तुम !
यह तुम थी !
क्या हुआ
जो इस जन्म में मेरी प्रेमिका नहीं थी
क्या पता मेरे हज़ार जन्मों की प्रेयसी
तुम्हारे अन्तस्तल में छुपी बैठी हो
और तुम्हें ख़बर न हो
यह कैसी उलझन थी मेरे भीतर कई युगों से
यह तुम थी अपने को मेरे और पास लाती थी
जब-जब मैं अपने को तुमसे दूर करता था
यह तुम थी !
जो करती थी मेरे गुनाहों की अनदेखी

मेरे खेतों में
अपने गीतों के संग पोछीटा मार कर
रोपाई करती हुई मज़दूरनी कौन थी!
अपनी हमजोलियों के साथ
हंसी-ठिठोली के बीच
बड़े मन से मेरे खेतों में एक-एक खर-पतवार
ढूँढ़-ढूँढ़ कर निराई करती हुई
यह तन्वंगी कौन थी!
मेरे जीवन के भट्ठे पर पिछले तीस साल से
ईंट पकाती हुई झाँवाँ जैसी यह स्त्री कौन थी
यह तुम थी!

और यह मैं था एक अभिशप्त मेघ !
जिसके नीचे न कोई धरती थी न ऊपर कोई आकाश
और जिसके भीतर पानी की जगह प्यास ही प्यास
कभी
मैं ढू़ँढ़ता उस तुम को !
और कभी इस तुम को !
कभी किसी की प्यास न बुझाई
न किसी के तप्त अंतस्तल को
सींचा
न किसी को कोई उम्मीद बन्धाई
यह मैं था प्रेम का बंजर
इतनी बड़ी पृथ्वी का
एक मृत और विदीर्ण टुकड़ा
अपनी विकलता और विफलता के गुनाह में
डूबा
यह मैं था ! यह मेरे हज़ार गुनाह थे
और तुम मेरे गुनाहों की देवी थी !
यह तुम थी!
जिससे
मेरी छोटी-सी दुनिया में
गौरैया की चोंच में अँटने भर का
उसके पँख पर फैलने भर का
एक छोटा-सा जीवन था
एक छोटी-सी खिड़की थी
जहाँ मैं खड़ा था
सुप्रभात का एक छोटा-सा
दृश्यखण्ड था
यह तुम थी ! मेरी आँखों के सामने
मेरी तुम थी
यह तुम थी !
मेरे गुनाहों की देवी!
मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा दो
चाहे अपनी करुणा में
सजा लो मुझे
अपनी लाल बिन्दी की तरह
अपने अन्धेरे में भासमान इस उजास का क्या करूँ
जो तुमसे है इस उम्मीद का क्या करूँ
आत्मा की आवाज का क्या करूँ
अतीत का क्या करूँ अपने आज का क्या करूँ
तुम्हारा क्या करूँ
जो मेरे जीवन की सखी थी और सखी है
जिसके संग लिए सात फेरे
मेरे सात जन्म के फेरे हैं
जो मेरी आत्मा की चिरसंगिनी थी मेरा अन्तिम ठौर है
यह तुम थी !
यह तुम हो !!
मेरी मीता
मेरी परिणीता ।