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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 21 से 30 तक'''
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ज्मुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
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त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न।1।
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ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न
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तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न।2।
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स्ेाइअ सहित सनेेह देह भरि,कामधेनु कलि कासी।
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समनि सोक संताप पाप रूज, सकल-सुमंगल-रासी।1।
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मरजादा चहुँ ओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
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तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अविनासी।2।
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अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
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गलकंबल बरूना बिभा िजनु, लूम लसति, सरिताऽसि।3।
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दंड पानि भैरव बिषान,तलरूचि-खलगन-भयदा-सी।
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लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी।4।
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मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुसरि-सुख सुखमा-सी।
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स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी।5।
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बिस्वनाथ पालक कृपालुचित7 लालति नित गिरजा-सी।
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सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी।
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पंचााच्छरी प्रान7 मुद माधव7 गब्य सुपंचनदा-सी।
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ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी।7।
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चारितु चरिति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
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लहत परम पद प्य पावन, जेहि चहत प्रपंच- उदासी।8।
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कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला -सी।
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तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी।9।
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सब सोच-बिमोचन चित्रकूट। कलिहरन, करन कल्यान बूट।1।
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सुचि अवनि सुहावनि आलबाल। कानन बिचित्र, बारी बिसाल।2।
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मंदाकिनि-मालिनि सदा सींच। बर बारि, बिषम नर-नारि नीच।3।
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साखा सुसृंग, भूरूह -सुपात। निरझर मधुबरद्व मृदु मलय बात।4।
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सुक,पिक, मधुकर, मुनिबर बिहारू। साधन प्रसून फल चारि चारू।5।
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भव-घोरघाम-हर सुखद छाँह। थप्यो थिर प्रभाव जानकी-नाह।6।
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साधक-सुपथिक बड़े भाग पाइ। पावत अनेक अभिमत अघाइ।7।
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रस एक, रहित-गुन-करम-काल। सिय राम लखन पालक कृपाल।8।
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तुलसी जो  राम पद चाहिय प्रेम। सेइय गिरि करि निरूपाधि नेम।9।
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(24)
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स्अब चित चेति चित्रकूटहि चलु।
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कोपित कलि, लोपित मंगल मगु, बिलसत बढ़त मोह माया-मलु।।
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भूमि बिलोकु राम-पद-अंकित, बन बिलोकु रघुबर - बिहारथलु।।
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सैल-सृंग भवभंग -हेतु लखु, दलन कपट -पाखंड-दंभ-दलु। ।
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जहँ जनमे जग-जनक जगतपनि, बिधि-हरि-हर परिहरि प्रपंच छलु।।
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सकृत प्रबेस करत जेहि आस्त्रम, बिगत-बिषाद भये परथ नलु।।
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न करू बिलंब बिचारू चारूमति, बरष पाछिले सम अगिले पलु।
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पुत्र सेा जाइ जपहि, जो जपि भे, अजर अमर हर अचइ हलाहलु।।
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रामनाम-जप जाग करत नित, मज्जत पय पावन पीवत जलु।
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करिहैं राम भावतैा मनकौ, सुख-साधन, अनयास महाफलु।ं
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कामदमनि कामता, कलपतरू से जुग-जुग जागत जगतीतलु।
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तुलसी तोहि बिसेषि बूझिये, एक प्रतिति, प्रीति एकै बलु।।
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(25)
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जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोति-संभूत विधु विबुध- कुल-कैरवानंद कारी।
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केसरी-चारू-लोचन चकोरक-सुखद, लोक-शोक-संतापहारी।1।
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जयति जय बालकपि केलि-कैतुक उदित-चंडकर-मंडल -ग्रासकर्ता।
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राहु-रवि- शक्र- पवि- गर्व-खर्वीकरण शरण-भंयहरण जय भुवन-भर्ता।2।
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जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता।
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विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण, बुद्धि-वारिधि-विधाता।3।
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जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण, बालि-बलशालि-बध -मुख्यहेतू।
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जलधि लंधन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू।4।
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जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका।
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लूमलीलाऽनल-ज्वालमाला कुलित होलिका करण लंकेश-लंका।5।
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जयति सौमित्र-रघुनंदनानंदकर, ऋक्ष-कपि-कटक-संघट -विधायी।
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बद्ध-वारिधि-सेतु अमर -मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी।6।
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जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरू-शैल-पानी।
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समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरिडारे सुभट घालि घानी।7।
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जयति दशकंठ घटकर्ण-वारिधि-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हंता।
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अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल -जल-गगन-गंता।8।
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जयति विश्व- विख्यात बानैत-विरूदावली, विदुष बरनत वेद विमल बानी।
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दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी।9।
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जके गति है हनुमान की।
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ताकी पैज पुजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी।1।
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अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरूदावलि नहिं आनकी।
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सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी।2।
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तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरू जानकी।
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तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी।3।
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21:14, 5 अप्रैल 2011 का अवतरण