भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होली का वह दिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKAnthologyHoli}} | {{KKAnthologyHoli}} | ||
+ | {{KKAnthologyLove}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
होली का दिन था | होली का दिन था |
11:22, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
होली का दिन था
भंग पी ली थी हम ने उस शाम
घूम रहे थे, झूम रहे थे
माल रोड पर बीच-सड़क हम सरेआम
नशे में थी तू परेशान कुछ
गुस्से में मुझ पर दहाड़ रही थी
बरबाद किया है जीवन तेरा मैं ने
कहकर मुझे लताड़ रही थी
मैं सकते में था
किसी चूहे-सा डरा हुआ था
ऊपर से सहज लगता था पर
भीतर गले-गले तक भरा हुआ था
तू पास थी मेरे उस पल-छिन
बहुत साथ तेरा मुझे भाता था
औ' उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
यह विचार भी मन में आता था
(रचनाकाल : 2006)