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"पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: ( पार्वती-मंगल पृष्ठ 3) मोरेहुँ मन अस आव मिलिहिं बरू बाउर। लखि नारद …)
 
 
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( पार्वती-मंगल पृष्ठ 3)
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<poem>
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'''।।श्रीहरि।।'''
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'''( पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)'''
  
मोरेहुँ मन अस आव मिलिहिं बरू बाउर।
+
देव देखि भल  समय मनोज बुलायउ।
लखि नारद नारदी उमहि सुख भा उर।17।
+
कहेउ करिअ सुर काजु साजु सजि आयउ।25।
  
सुनि सहमे परि पाइ कहत भए दंपतिं।
+
बामदेउ सन कामु बाम होइ बरतेउ।
गिरिजहि लगे हमार जिवनु सुख संपति।18।
+
जग जय मद निदरेसि फरू पायसि फर तेउ।26।
  
नाथ कहिय सोइ जतन मिटइ जेहिं दूषनु।
+
रति पति हीन मलीन बिलोकि बिसूरति।
  दोष दलन मुनि कहेउ बाल बिधु भूषनु।19।
+
नीलकंठ मृदु सील कृपामय मूरति।27।
 +
   
 +
आसुतोष परितोष कीन्ह बर दीन्हेउ।
 +
सिव उदास तजि बास अनत गम कीन्हेउ।28।
  
  अवसि होइ सिधि साहस फलइ सुसाधन।
+
दोहा-
कोटि कलप तरू सरिस संभु अवराधन।20।
+
अब ते रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंगु।
 +
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।।
 +
  जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महि भारा।
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कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।।
  
तुम्हरें आश्रम अबहिं ईसु तप साधहिं।
+
उमा नेह बस बिकल देह सुधि बुधि गई।
कहिअ उमहि मनु लाइ जाइ अवराधहिं।।21
+
कलप बेलि बन बढ़त बिषम हिम जनु दई।29।
  
कहि उपाय दंपतिहि मुदित मुनिबर गए।
+
समाचार सब सखिन्ह जाइ घर घर कहे।
अति सनेहँ पितु मातु उमहि सिखवत भए।22।
+
सुनत मातु पितु परिजन दारून दुख दहे।30।
 +
जाइ देखि अति प्रेम उमहि उर लावहिं।
 +
बिलपहिं बाम बिधातहि देाष लगावहिं।31।
 +
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जौ न होहिं मंगल मग सुर बिधि बाधक।
 +
तौ अभिमत फल पावहिं करि श्रमु साधक।32।
  
सजि समाज गिरिराज दीन्ह सबु गिरिजहि।
+
साधक कलेस सुनाइ सब गौरिहि निहोरत धाम को।
बदति जननि जगदीस जुबति जनि सिरजहिं। 23।
+
को सुनइ काहि सोहाय घर चित चहत चंद्र ललामको।
 +
समुझाइ सबहि दृढ़ाइ मनु पितु मातु, आयसु पाइ कै।
 +
लागी करन पुनि अगमु तपु तुलसी कहै किमि गाइकै।4।
  
जननि जनक उपदेस महेसहि सेवहि ।
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'''(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)'''
अति आदर अनुराग भगति मनु भेवहि।24।
+
  
भ्ेावहि भगति मन बचन करम अनन्य गति हरचरन की।
+
</poem>
गौरव सनेह सकेाच सेवा जाइ केहि बिधि बरन की।ं
+
गुन रूप जोबन सींव संुदरि निरखि छोभ न हर हिएँ।
+
ते धीर अछत बिकार हेतु जे रहत मनसिज बस  किएँ।3।
+
( इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 3)
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13:27, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

।।श्रीहरि।।
    
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)

देव देखि भल समय मनोज बुलायउ।
कहेउ करिअ सुर काजु साजु सजि आयउ।25।

बामदेउ सन कामु बाम होइ बरतेउ।
जग जय मद निदरेसि फरू पायसि फर तेउ।26।

रति पति हीन मलीन बिलोकि बिसूरति।
नीलकंठ मृदु सील कृपामय मूरति।27।
 
आसुतोष परितोष कीन्ह बर दीन्हेउ।
सिव उदास तजि बास अनत गम कीन्हेउ।28।

दोहा-
अब ते रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।।
 जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महि भारा।
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।।

उमा नेह बस बिकल देह सुधि बुधि गई।
कलप बेलि बन बढ़त बिषम हिम जनु दई।29।

 समाचार सब सखिन्ह जाइ घर घर कहे।
सुनत मातु पितु परिजन दारून दुख दहे।30।
जाइ देखि अति प्रेम उमहि उर लावहिं।
 बिलपहिं बाम बिधातहि देाष लगावहिं।31।
 
जौ न होहिं मंगल मग सुर बिधि बाधक।
तौ अभिमत फल पावहिं करि श्रमु साधक।32।

साधक कलेस सुनाइ सब गौरिहि निहोरत धाम को।
को सुनइ काहि सोहाय घर चित चहत चंद्र ललामको।
समुझाइ सबहि दृढ़ाइ मनु पितु मातु, आयसु पाइ कै।
लागी करन पुनि अगमु तपु तुलसी कहै किमि गाइकै।4।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)