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− | + | वर्षा की बूँदों का झरना | |
+ | पतझड़ के बाद बसंत का आ जाना । | ||
− | + | सौतेली माँ के उत्पीड़न से | |
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− | + | घर से भाग जाती है लड़की कभी | |
− | + | गाँव भर में शुरू हो जाता है | |
− | + | चर्चाओं का उफ़ान | |
− | + | आँगन हो / गली हो / पनघट हो | |
− | कोई | + | या चाय की दुकान |
+ | आ ही जाती है उसके भागने की बात | ||
+ | तरह-तरह की आकाँक्षाएँ | ||
+ | संबंधों की बातें | ||
+ | जितने मुँह उतने अफ़साने | ||
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+ | दो-चार दिन में लौट आती है लड़की | ||
+ | घर में बढ़ जाता है तनाव | ||
+ | कहीं कोई ख़ुशी नहीं | ||
+ | मर क्यों नहीं गई | ||
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+ | क्यों लौट आई यह लड़की । </pre> | ||
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10:51, 27 अप्रैल 2011 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : घर से भागी हुई लड़की रचनाकार: महेश चंद्र पुनेठा |
परीक्षा में फ़ेल हो जाने पर या माँ-बाप से लड़कर घर से भाग जाता है लड़का दुख व्यक्त करते हैं लोग लड़का कहीं कर लेता है दो रोटी का जुगाड़ या फिर कुछ दिन घूम-फिरकर लौट आता है अपने घर ख़ुशियों से भर जाता है घर जैसे लम्बे सूखे के बाद वर्षा की बूँदों का झरना पतझड़ के बाद बसंत का आ जाना । सौतेली माँ के उत्पीड़न से या शराबी बाप के आतंक से घर से भाग जाती है लड़की कभी गाँव भर में शुरू हो जाता है चर्चाओं का उफ़ान आँगन हो / गली हो / पनघट हो या चाय की दुकान आ ही जाती है उसके भागने की बात तरह-तरह की आकाँक्षाएँ संबंधों की बातें जितने मुँह उतने अफ़साने दो-चार दिन में लौट आती है लड़की घर में बढ़ जाता है तनाव कहीं कोई ख़ुशी नहीं मर क्यों नहीं गई मर ही जाती क्यों लौट आई यह लड़की ।