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एक दिन वासंती संध्या में / गुलाब खंडेलवाल
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21:24, 20 जुलाई 2011
[[Category:गीत]]
<poem>
एक दिन वासंती संध्या में
खड़े सिन्धु-तट पर थे जब हम, हाथ हाथ में थामे
भाव यही मन का मैं?
तभी
पलट कर
पलटकर
ज्वार बह गया
पल में रज का महल ढह गया
प्रश्न वहीं
-
का
-
वहीं रह गया
उड़ता हुआ हवा में
Vibhajhalani
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