भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 24" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…) |
|||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
छंद 29से 30) | छंद 29से 30) | ||
+ | |||
+ | (29) | ||
+ | गगन निहारि , किलकारी भारी सुनि, | ||
+ | हनुमान पहिचानि भए सानँद सचेत हैं। | ||
+ | |||
+ | बूड़त जहाज बच्यो पथिकसमाजु, मानो , | ||
+ | आजु जाए जानि सब अंकमाल देत हैं। | ||
+ | |||
+ | ‘जै जै जानकीस जै जै लखन-कपीस’ कहि, | ||
+ | कूदैं कपि कौतुकी नटत रेत-रेत हैं। | ||
+ | |||
+ | अंगदु मयंदु नलु नील बलसील महा | ||
+ | बालधी फिरावैं, मुख नाना गति लेत है।29। | ||
+ | |||
+ | (30) | ||
+ | आयो हनुमानु, प्रानहेतु अंकमाल देत, | ||
+ | लेत पगधूरि ऐक, चूमत लँगूल हैं। | ||
+ | |||
+ | एक बूझैं बार-बार सीय -समाचार , कहैं , | ||
+ | पवनकुमारू, भो बिगतश्रम-सूल हैं।। | ||
+ | |||
+ | एक भूखे जानि, आगें आनैं कंद-मूल-फल, | ||
+ | एक पूजैं बाहु बलमूत तोरि फूल हैं। | ||
+ | |||
+ | एक कहैं ‘तुलसी’ सकल सिधि ताकें, | ||
+ | जाकें कृपा-पाथनाथ सीतानाथु सानुकूल हैं।30। | ||
</poem> | </poem> |
20:26, 2 मई 2011 के समय का अवतरण
(सीताजी से बिदाईं)
छंद 29से 30)
(29)
गगन निहारि , किलकारी भारी सुनि,
हनुमान पहिचानि भए सानँद सचेत हैं।
बूड़त जहाज बच्यो पथिकसमाजु, मानो ,
आजु जाए जानि सब अंकमाल देत हैं।
‘जै जै जानकीस जै जै लखन-कपीस’ कहि,
कूदैं कपि कौतुकी नटत रेत-रेत हैं।
अंगदु मयंदु नलु नील बलसील महा
बालधी फिरावैं, मुख नाना गति लेत है।29।
(30)
आयो हनुमानु, प्रानहेतु अंकमाल देत,
लेत पगधूरि ऐक, चूमत लँगूल हैं।
एक बूझैं बार-बार सीय -समाचार , कहैं ,
पवनकुमारू, भो बिगतश्रम-सूल हैं।।
एक भूखे जानि, आगें आनैं कंद-मूल-फल,
एक पूजैं बाहु बलमूत तोरि फूल हैं।
एक कहैं ‘तुलसी’ सकल सिधि ताकें,
जाकें कृपा-पाथनाथ सीतानाथु सानुकूल हैं।30।