भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 25" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…) |
|||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
'''( भगवान् रामकी उदारता )''' | '''( भगवान् रामकी उदारता )''' | ||
− | + | ||
+ | नगरू कुबेरको सुमेरूकी बराबरी, | ||
+ | बिरंचि-बुद्धिको बिलासु लंक निरमान भो। | ||
+ | |||
+ | ईसहि चढ़ाइ सीस बीसबाहु बीर तहाँ, | ||
+ | रावनु सो राजा रज-तेजको निधानु भो।। | ||
+ | |||
+ | तीसरें उपास बनबास सिंधु पास सो | ||
+ | समाजु महाराजजू को एक दिन दानु भो।32। | ||
+ | |||
+ | ‘तुलसी’ तिलोककी समृद्धि, सौंज, संपदा , | ||
+ | सकेलि चाकि राखी, रासि, जाँगरू जहानु भो। | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
19:04, 30 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
( भगवान् रामकी उदारता )
नगरू कुबेरको सुमेरूकी बराबरी,
बिरंचि-बुद्धिको बिलासु लंक निरमान भो।
ईसहि चढ़ाइ सीस बीसबाहु बीर तहाँ,
रावनु सो राजा रज-तेजको निधानु भो।।
तीसरें उपास बनबास सिंधु पास सो
समाजु महाराजजू को एक दिन दानु भो।32।
‘तुलसी’ तिलोककी समृद्धि, सौंज, संपदा ,
सकेलि चाकि राखी, रासि, जाँगरू जहानु भो।