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"अभ्रकी धूप / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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फिर जल में कंचन की झलकी
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फिर अपनी बाँकी चितवन से
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मुझे लुभाए यह लड़की

00:42, 24 जून 2007 का अवतरण


यह धूप बताशे के रंग की

यह दमक आतशी दर्पण की

कई दिनों में आज खिल आई है

यह आभा दिनकर के तन की


फिर चमक उठा गगन सारा

फिर गमक उठा है वन सारा

फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा

कुसुमित हो उठा जीवन सारा


यह धूप कपूरी, क्या कहना

यह रंग कसूरी, क्या कहना

अक्षत-सा छींट रही मन में

उल्लास-माधुरी क्या कहना


फिर संदली धूल उड़े हलकी

फिर जल में कंचन की झलकी

फिर अपनी बाँकी चितवन से

मुझे लुभाए यह लड़की