"कंधों पर सूरज / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
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प्रश्न गाँव औ' शहरों के तो | प्रश्न गाँव औ' शहरों के तो | ||
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हम पीछे सुलझा ही लेंगे | हम पीछे सुलझा ही लेंगे | ||
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तुम पहले कंधों पर सूरज | तुम पहले कंधों पर सूरज | ||
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लादे होने का भ्रम छोड़ो । | लादे होने का भ्रम छोड़ो । | ||
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चिकने पत्थर की पगडंडी | चिकने पत्थर की पगडंडी | ||
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नदी किनारे जो जाती है | नदी किनारे जो जाती है | ||
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ढालदार है | ढालदार है | ||
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पेड़, लताओं, गुल्मों के झुरमुट ने उसको | पेड़, लताओं, गुल्मों के झुरमुट ने उसको | ||
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ढाँप रखा है | ढाँप रखा है | ||
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काई हरी-हरी लिपटी है | काई हरी-हरी लिपटी है | ||
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कैसे अब महकेंगे रस्ते | कैसे अब महकेंगे रस्ते | ||
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कैसे नदी किनारे रुनझुन | कैसे नदी किनारे रुनझुन | ||
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किसी भोर की शुभ वेला में | किसी भोर की शुभ वेला में | ||
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जा पाएगी | जा पाएगी | ||
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कैसे सूनी राह | कैसे सूनी राह | ||
− | + | साँस औ' आँख मूँद | |
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पलकें मीचे भी | पलकें मीचे भी | ||
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चलता | चलता | ||
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प्रथम किरण से पहले-पहले | प्रथम किरण से पहले-पहले | ||
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प्रतिक्षण | प्रतिक्षण | ||
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मंत्र उचारे कोई ? | मंत्र उचारे कोई ? | ||
− | + | कैसे कूद-फाँदते बच्चे | |
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धड़-धड़ धड़- धड़ कर उतरेंगे | धड़-धड़ धड़- धड़ कर उतरेंगे | ||
− | + | गाएँगे ऋतुओँ की गीता ? | |
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कैसे हवा उठेगी ऊपर | कैसे हवा उठेगी ऊपर | ||
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तपने पर भी ? | तपने पर भी ? | ||
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कैसे कोई बारिश में भीगेगा हँस कर ? | कैसे कोई बारिश में भीगेगा हँस कर ? | ||
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छत पर आग उगाने वाले | छत पर आग उगाने वाले | ||
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दीवारों के सन्नाटों में | दीवारों के सन्नाटों में | ||
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क्या घटता है - | क्या घटता है - | ||
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हम पीछे सोचें-सलटेंगे | हम पीछे सोचें-सलटेंगे | ||
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तुम पहले कंधों पर सूरज | तुम पहले कंधों पर सूरज | ||
− | + | लादे होने का भ्रम छोड़ो । | |
− | लादे होने का भ्रम | + | </poem> |
14:10, 14 मई 2011 का अवतरण
प्रश्न गाँव औ' शहरों के तो
हम पीछे सुलझा ही लेंगे
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।
चिकने पत्थर की पगडंडी
नदी किनारे जो जाती है
ढालदार है
पेड़, लताओं, गुल्मों के झुरमुट ने उसको
ढाँप रखा है
काई हरी-हरी लिपटी है
कैसे अब महकेंगे रस्ते
कैसे नदी किनारे रुनझुन
किसी भोर की शुभ वेला में
जा पाएगी
कैसे सूनी राह
साँस औ' आँख मूँद
पलकें मीचे भी
चलता
प्रथम किरण से पहले-पहले
प्रतिक्षण
मंत्र उचारे कोई ?
कैसे कूद-फाँदते बच्चे
धड़-धड़ धड़- धड़ कर उतरेंगे
गाएँगे ऋतुओँ की गीता ?
कैसे हवा उठेगी ऊपर
तपने पर भी ?
कैसे कोई बारिश में भीगेगा हँस कर ?
छत पर आग उगाने वाले
दीवारों के सन्नाटों में
क्या घटता है -
हम पीछे सोचें-सलटेंगे
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।