भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभाव / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी | |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
इस बार फिर मेरे बैग को | इस बार फिर मेरे बैग को | ||
− | |||
मत टटोलना माँ | मत टटोलना माँ | ||
− | |||
तंगहाली के सपनों के सिवा | तंगहाली के सपनों के सिवा | ||
− | |||
कुछ नहीं है उसमें। | कुछ नहीं है उसमें। | ||
− | |||
− | |||
जानती हूँ ख़ूब फबेगी तुझ पर वह साड़ी | जानती हूँ ख़ूब फबेगी तुझ पर वह साड़ी | ||
− | |||
पर साड़ी सपनों से | पर साड़ी सपनों से | ||
− | |||
ख़रीदी नहीं जा सकती । | ख़रीदी नहीं जा सकती । | ||
− | |||
− | |||
काश ख़रीद पाती मैं तुम्हारे लिए | काश ख़रीद पाती मैं तुम्हारे लिए | ||
− | |||
सिंदूर और साड़ी | सिंदूर और साड़ी | ||
− | |||
पिता के लिए नया कुर्ता | पिता के लिए नया कुर्ता | ||
− | |||
भाई के लिए मफ़लर | भाई के लिए मफ़लर | ||
− | + | जवान होती बहन के लेए कुछ सपने । | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
ख़ाली जेबों में हाथ डाले | ख़ाली जेबों में हाथ डाले | ||
− | + | हर रोज़ जाती हूँ बाज़ार | |
− | हर रोज़ जाती हूँ | + | और घंटों करती रहती हूँ विंडो-शॉपिंग । |
− | + | </poem> | |
− | और घंटों करती रहती हूँ | + |
11:22, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण
इस बार फिर मेरे बैग को
मत टटोलना माँ
तंगहाली के सपनों के सिवा
कुछ नहीं है उसमें।
जानती हूँ ख़ूब फबेगी तुझ पर वह साड़ी
पर साड़ी सपनों से
ख़रीदी नहीं जा सकती ।
काश ख़रीद पाती मैं तुम्हारे लिए
सिंदूर और साड़ी
पिता के लिए नया कुर्ता
भाई के लिए मफ़लर
जवान होती बहन के लेए कुछ सपने ।
ख़ाली जेबों में हाथ डाले
हर रोज़ जाती हूँ बाज़ार
और घंटों करती रहती हूँ विंडो-शॉपिंग ।