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"संजीवनी / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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ओ मेरे पिता !
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मैंने दी तुम्हें अग्नि
 
मैंने दी तुम्हें अग्नि
 
और राख हुए तुम
 
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तुम्हें गंगा-प्रवाहित कर के भी
 
तुम्हें गंगा-प्रवाहित कर के भी
 
मैं मुक्त नहीं हुआ
 
मैं मुक्त नहीं हुआ
ओ मेरे पिता !
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ओ मेरे पिता!
  
 
नहीं रखी राख
 
नहीं रखी राख
 
नहीं रखी हड्डियां
 
नहीं रखी हड्डियां
 
नहीं बैठा रहा शमशान में
 
नहीं बैठा रहा शमशान में
संजीवनी ?
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संजीवनी?
गंगा-प्रवाह संभावनाओं का अंत नहीं है !
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गंगा-प्रवाह संभावनाओं का अंत नहीं है!
  
 
मेरे भीतर भी
 
मेरे भीतर भी
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और तुम्हारे भी
 
और तुम्हारे भी
 
मैंने तुमको पाया
 
मैंने तुमको पाया
मेरे ही भीतर
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अपने भीतर
मैं मुक्त नहीं हुआ  
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मैं मुक्त नहीं हुआ.....
मैंने कभी चाही नहीं
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मैं मुक्त हो भी नहीं सकता
मेरे मुक्ति
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ओ मेरे पिता!
मैं मुक्त नहीं हुआ
+
ओ मेरे पिता !
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06:30, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

मैं मुक्त नहीं हुआ
ओ मेरे पिता!
मैंने दी तुम्हें अग्नि
और राख हुए तुम
तुम्हें गंगा-प्रवाहित कर के भी
मैं मुक्त नहीं हुआ
ओ मेरे पिता!

नहीं रखी राख
नहीं रखी हड्डियां
नहीं बैठा रहा शमशान में
संजीवनी?
गंगा-प्रवाह संभावनाओं का अंत नहीं है!

मेरे भीतर भी
बहती है गंगा एक
और तुम्हारे भी
मैंने तुमको पाया
अपने भीतर
मैं मुक्त नहीं हुआ.....
मैं मुक्त हो भी नहीं सकता
ओ मेरे पिता!