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"अलविदा / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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प्यार से चूम कर मेरा माथा | प्यार से चूम कर मेरा माथा | ||
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‘अलविदा’ माँ ने कह दिया मुझको | ‘अलविदा’ माँ ने कह दिया मुझको | ||
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तोड़ कर सारे अश्क पलकों से | तोड़ कर सारे अश्क पलकों से | ||
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अपनी आंखों में उसने दफ़न किया | अपनी आंखों में उसने दफ़न किया | ||
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नज़र भी तोड़नी पड़ी हमको | नज़र भी तोड़नी पड़ी हमको | ||
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जैसे पत्ते हवा से टूटते हैं | जैसे पत्ते हवा से टूटते हैं | ||
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इतनी तेज़ आई उस रोज़ आंधी | इतनी तेज़ आई उस रोज़ आंधी | ||
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कुछ साँस उखड़ गए दरख़्तों की तरह | कुछ साँस उखड़ गए दरख़्तों की तरह | ||
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वक़्त की रफ़्तार बढ़ गई शायद | वक़्त की रफ़्तार बढ़ गई शायद | ||
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या फिर मेरे क़दम कमजोर से हुए | या फिर मेरे क़दम कमजोर से हुए | ||
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मैंने कई बार 'counting' भी की | मैंने कई बार 'counting' भी की | ||
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हर एक हिस्सा जिस्म का मौजूद नहीं था | हर एक हिस्सा जिस्म का मौजूद नहीं था | ||
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फ़लक के बदन पर सितारे भी यूँ दिखे | फ़लक के बदन पर सितारे भी यूँ दिखे | ||
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जैसे पितामह भीष्म सोयें हो तीर पर | जैसे पितामह भीष्म सोयें हो तीर पर | ||
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जैसे हज़ारों ज़ख़्म एक साथ जल उठे | जैसे हज़ारों ज़ख़्म एक साथ जल उठे | ||
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एक बड़ा-सा ज़ख़्म जो सूख चुका था | एक बड़ा-सा ज़ख़्म जो सूख चुका था | ||
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जम गई मानो चाँद की पपड़ी | जम गई मानो चाँद की पपड़ी | ||
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मैंने धीरे से उसको सहलाया | मैंने धीरे से उसको सहलाया | ||
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ख़ून ही ख़ून था चारों तरफ़ | ख़ून ही ख़ून था चारों तरफ़ | ||
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किस क़दर गुज़री रात मत पूछो | किस क़दर गुज़री रात मत पूछो | ||
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कैसे बताऊँ दिन कैसे बसर हुआ | कैसे बताऊँ दिन कैसे बसर हुआ | ||
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'माँ तुम्हारी याद आती है' | 'माँ तुम्हारी याद आती है' | ||
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01:29, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
प्यार से चूम कर मेरा माथा
‘अलविदा’ माँ ने कह दिया मुझको
तोड़ कर सारे अश्क पलकों से
अपनी आंखों में उसने दफ़न किया
नज़र भी तोड़नी पड़ी हमको
जैसे पत्ते हवा से टूटते हैं
इतनी तेज़ आई उस रोज़ आंधी
कुछ साँस उखड़ गए दरख़्तों की तरह
वक़्त की रफ़्तार बढ़ गई शायद
या फिर मेरे क़दम कमजोर से हुए
मैंने कई बार 'counting' भी की
हर एक हिस्सा जिस्म का मौजूद नहीं था
फ़लक के बदन पर सितारे भी यूँ दिखे
जैसे पितामह भीष्म सोयें हो तीर पर
जैसे हज़ारों ज़ख़्म एक साथ जल उठे
एक बड़ा-सा ज़ख़्म जो सूख चुका था
जम गई मानो चाँद की पपड़ी
मैंने धीरे से उसको सहलाया
ख़ून ही ख़ून था चारों तरफ़
किस क़दर गुज़री रात मत पूछो
कैसे बताऊँ दिन कैसे बसर हुआ
'माँ तुम्हारी याद आती है'