भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काली पट्टी दिखती/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
हर उंगली भोली चिड़िया के  
 
हर उंगली भोली चिड़िया के  
 
पंख कतरती है,  
 
पंख कतरती है,  
राजा की आँखो पर काली  
+
राजा की आँखों पर काली  
 
पट्टी दिखती है ।
 
पट्टी दिखती है ।
 
   
 
   
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
थाने के अन्दर अबला की  
 
थाने के अन्दर अबला की  
 
इज़्ज़त लुटती है ।
 
इज़्ज़त लुटती है ।
+
 
 
इनकी मरा आँख का पानी  
 
इनकी मरा आँख का पानी  
 
तो वो अंधे हैं,  
 
तो वो अंधे हैं,  
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
ख़बर निकलती है ।
 
ख़बर निकलती है ।
 
   
 
   
राजा की आँखो पर काली  
+
राजा की आँखों पर काली  
 
पट्टी दिखती है ।
 
पट्टी दिखती है ।
 
</poem>
 
</poem>

19:32, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

हर उंगली भोली चिड़िया के
पंख कतरती है,
राजा की आँखों पर काली
पट्टी दिखती है ।
 
अंधी नगरी, चौपट राजा,
शासन सिक्के का,
हर बाज़ी पर कब्ज़ा दिखता
ज़ालिम इक्के का,
राजनीति की चिमनी गाढ़ा
धुआँ उगलती है ।
 
मारकीन का फटा अंगरखा
धोती गाढ़े की,
आसमान के नीचे कटतीं
रातें जाड़े की,
थाने के अन्दर अबला की
इज़्ज़त लुटती है ।

इनकी मरा आँख का पानी
तो वो अंधे हैं,
खाल पराई से घर भरना
सबके धंधे हैं
अख़बारों में रोज़ लूट की
ख़बर निकलती है ।
 
राजा की आँखों पर काली
पट्टी दिखती है ।