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वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
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19:52, 8 जुलाई 2011
<poem>
वीणा को यों
ही
तो
हाथ में थामे हुए हैं हम
फिर भी सुना के मौन सभा में हुए हैं हम
एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते
दिए
दिये
को लेके हवा में हुए हैं हम
जिसपर नज़र पडी न बहारों की आजतक
ऐसे भी एक गुलाब गया में हुए हैं हम
<poem>
Vibhajhalani
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