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है वही शोख़ हँसी मुँह पे शमा के अब भी
फर्क फ़र्क आया न कोई मौत से परवाने की
कौन होगा तेरी गलियों में हम-सा ख़ानाख़राब
और दो-चार घड़ी खेल उन आँखों में, गुलाब!
फिर मिलेगी न तुझे रात परीखाने परीख़ाने की
<poem>
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