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"हमें नहीं मालूम था / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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कभी भीतर से अशांत । हम यानी मैं कुछ सीढ़ियाँ | कभी भीतर से अशांत । हम यानी मैं कुछ सीढ़ियाँ | ||
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लगता है तय था हमारा मिलना । | लगता है तय था हमारा मिलना । | ||
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11:28, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
हमें नहीं मालूम था कि हम मिलेंगे एक दिन
पर जब मिल जाते हैं लगता है
तय था हमारा मिलना । यह कविता केवल मनुष्यों
के बारे में नहीं है । हम बैठे रहते हैं गुमसुम
कभी भीतर से अशांत । हम यानी मैं कुछ सीढ़ियाँ
कुछ पेड़, पहाड़, लड़कियाँ कभी आकाश धूप
छत आवाज़ें रात की दिन की ।
जब हम सचमुच मिलते हैं
लगता है तय था हमारा मिलना ।