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चली नदी सी पद की परंपरा | चली नदी सी पद की परंपरा | ||
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कभी अहेरी मृग खोजने गए | कभी अहेरी मृग खोजने गए | ||
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जलाशयों के तट, तो प्रयाण को | जलाशयों के तट, तो प्रयाण को | ||
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बता दिया मार्ग बिना अहेर के | बता दिया मार्ग बिना अहेर के | ||
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कई गए, और गए, और चला किए, | कई गए, और गए, और चला किए, | ||
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रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया | रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया | ||
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अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया, | अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया, | ||
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प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में | प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में | ||
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अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ | अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ | ||
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05:23, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
बिछे हुए मार्ग यहाँ अनेक हैं;
यहाँ, वहाँ, दृष्टि जहाँ घुमाइए,
उठे पदों की गति की कहानियाँ
अजस्रता में अपनी सजीव हैं ।
चली नदी सी पद की परंपरा
रुकी नहीं वेग कभी चुका नहीं
नए नए पैर अनेक भाव से
बढ़े । इसी से पदवी बनी रही ।
कभी अहेरी मृग खोजने गए
जलाशयों के तट, तो प्रयाण को
बता दिया मार्ग बिना अहेर के
सुमार्गता एक नवीन तथ्य है ।
कई गए, और गए, और चला किए,
रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया
चला किया तो बहुधा प्रसिद्धि भी
मिली, दिखा लक्षण लक्ष्य एक ही ।
अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया,
प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में
अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ
अनेकता ही नव आत्मबोध है ।