भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सरे-आग़ाज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Amitprabhakar (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem> शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-…) |
Amitprabhakar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<poem> | <poem> | ||
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी | शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी | ||
− | हर | + | हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है |
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़ | शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़ | ||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए | शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए | ||
− | जो संग-ए-सर-ए-राह की मानिंद निगूँ है । | + | जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है । |
</poem> | </poem> | ||
+ | |||
+ | |||
+ | <h2>शब्दार्थ </h2> | ||
+ | <references/> |
22:37, 19 जुलाई 2011 का अवतरण
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
जो आमद-ए-सरसर की तमन्ना में निगूँ है
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।
शब्दार्थ
<references/>