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"सरे-आग़ाज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

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शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
 
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-कस्ता से ख़ूँ है
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हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है
  
 
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
 
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
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शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
 
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह की मानिंद निगूँ है ।
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जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।
 
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<h2>शब्दार्थ </h2>
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22:37, 19 जुलाई 2011 का अवतरण

शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है

शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
जो आमद-ए-सरसर की तमन्ना में निगूँ है

शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।


शब्दार्थ

<references/>