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बहुत-बहुत पीछे कोई तो खींच रहा है । | बहुत-बहुत पीछे कोई तो खींच रहा है । |
19:14, 5 जनवरी 2008 का अवतरण
बहुत-बहुत पीछे कोई तो खींच रहा है ।
बहुत-बहुत आगे कोई पर मुझे बुलाता ।
आगे बढ़्ने की चाहत, पर बढ़ता पाता
नहीं । नहीं पीछे ही जाता । सींच रहा है
कौन हृदय को? बीच पड़ा हूँ चौराहे पर ।
सोच रहा हूँ, इतना जीवन व्यर्थ बिताया!
जो गाने थे गीत ज़िन्दगी के गा पाया?
नहीं । और फिर सोच रहा हूँ चौराहे पर ।
आगे-पीछे कहीं नहीं जा पाने का दुख
साल रहा है । इसीलिए मैं मुड़ जाता हूँ ।
एक अलग रस्ते पर चलकर भर जाता हूँ ।
नए-नए अनुभव, जीवन जी पाने का सुख
पाता हूँ । गाता हूँ । हँसता हूँ मैं जाता ।
इस तरह ही चलने की उष्मा हूँ पाता ।
(रचनाकाल : 1990)